Wednesday, March 15, 2017

चस्का लेखिका बनने का

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चस्का लेखिका बनने का
यह कोई कहानी नही, व्यंग्य नहीं मेरी तरह उन लाखों हजारो लोगो की पीड़ा है जो महान रचनाकार बनना चाहते है। बचपन से ही हर किसी को कुछ शौक होता है, कोई बड़ाकर होकर डाक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर, कोई वकील बनने की सोचता है तो कोई फिल्म स्टार बनना चाहता है। मैं सच कहूँ मेरा भी एक शौक था या कहूँ तो है। जनाब वह है मेरा दिलों जान से प्यारा शौक महान लेखिका बनने का। मुझे यह अक्सर आभास होता है कि मुझमें कही अरूधंति राय छुपी है तो कभी लगता है मेरी कलम शोभा डे को भी मात दे सकती है।
हद तो तब हो गयी जब मुझे रातो में ज्ञानपीठ और बुकर साहित्य पुरूस्कार के सपने आने लगे।
ऐसा नहीं है कि यह मेरे साथ हमेशा ही होता है पर जैसे चुनावी बुखार होता है वैसा ही बुखार मुझे होता है लेखिका बनने का बुखार जो हर पाँच वर्ष पर काफी जोर मारता है। यह तो था मेरे शौक का परिचय जनाब अब सुनिए इस शौक ने मेरी क्या गत बनायी।
 जब छोटे बच्चे अपना समय पार्क और खिलौनो के संग बिताते तो मेरा सारा समय पेन कागज व किताबों में उलझा रहता घर वाले शुरू में तो प्रसन्न रहे।
लेकिन जब मेरा शौक धीरे-धीरे उन पर भारी पड़ने लगा जब मेरा कीमती समय पढ़ाई की बजाय इधर उधर की कहानी लिखने में व्यतीत होने लगा।
आपको शायद अटपटा लगे पर शायद हर कहानी कार जीवनी ऐसे ही संघर्षो की नीव पर खड़ी होती है- ऐसा मेरा मानना है।
 मेरी लिखी रचनाओं को प्रकाशन हेतु कोई पुरस्कार ना मिला पुरस्कार या पैसा की तो छोड़िए उन्हे तो छपने योग्य स्थान भी ना मिला।
 समस्या और विकट तब हो गयी जब मेरे बोर्ड की परीक्षा थी और मैं कहानीकार बनने की सनक लिए कागज रंग रही थी। पूरे जोश से मैने घर के दूधवाले गली के मोची और पड़ोस की चाची को केन्द्र में रखकर एक महान कहानी की रचना कर डाली।
एक पत्रिका में प्रकाशन हेतु भेज भी दी। रोज डाकिया की राह ताकने लगी। इन्तजार करने लगी कि अब पाँच सौ रूपये के साथ एक स्वीकृति पत्र आने वाला ही है। आचनक मेरे सपनो पर व्रजपात हुआ। एक बड़ा धमाका हुआ 2 माह के भीतर ही चेक तो नहीं हाँ अस्वीकृति पत्र के साथ मेरी कहानी एक बैरंग लिफाफे में (जिसमें टिकट ना लगा हो) लौट आयी।
दुख तो बहुत हुआ कुछ निराश भी आयी, पर जनाब गिरते है शहसवार ही मैदाने जंगे में। मेरा हौसला पस्त ना हुआ।
मेरा शौक मेरी सनक बन गया था। धीरे-धीरे मेरा यह शौक और महँगा पड़ा जब रचनाए टाइप की हुयी माँगी जाने लगी। मुझे संकट ने भी आ घेरा। हादसा तो तब हुआ जब चाची को मेरी कहानी की एक प्रति मिल गयी। मेरा अपराध अक्षम्य था आखिर मैंने उनके निजी जीवन को सार्वजनिक बनाने का प्रयास जो किया था।
दण्ड भी मिला था, और फटकार भी साथ मिले थे माँ के हाथो के दो चाँटे। मेरी लेखनी दुनिया के सितम का शिकार हुयी।
 मेरा लेखिका बनने का चस्का दो वर्षो के लिए उतर गया। इसी बीच इण्टर भी कर लिया और जब कैरियर चुनने की बात आयी तो मेरी आत्मा में विद्यमान लेखिका पुनः जाग उठी।
मुझे लगा महादेवी वर्मा जी और सरोनी प्रीतम के बाद मेरी रचनाओं को ही हिन्दी साहित्य में सर्वोतम स्थान मिलने वाला है।
अथक श्रम व प्रयासों के बाद मेरे मन ने कुछ श्रेष्ठ रचनाओं की रचना कर डाली व एक बार फिर 4-5 जगह एक साथ भेज दी छपने हेतु। होना क्या था? फिर वही इन्तजार, फिर वही अस्वीकृत पत्र और बैरंग लिफाफे।
अब तो डाकिया भी मुझे देख मुस्कुराने लगा था। वो मुझे महान लेखिका नहीं एक बैंक समझता था जो हर कुछ दिनों के अन्तराल पर बैरंग लिफाफे के आगमन पर कुछ पैसे देती है।
मेरे लेखिका मन का सुनामी एक बार फिर शांत हो गया।
मेरे पढ़ने का शौक जारी था जिसका परिणाम मेरी आँखों पर झाॅकते मोटे काले चश्मे थे।
कुद वर्षो के उपरांत अचानक मेरे सोए शौक को मेरे मन की लेखिका ने पुनः जगा दिया। धीरे-धीरे मेरा लेखिका बनने का चस्का इतना बढ़ता गया कि मेरा मन हर घटना में एक कहानी ढँूढने लगी। मेरा पूरा जेबखर्च कागज, पेन, कम्प्यूटर टाइपिंग व फोटो-स्टेट की दुकानों पर खर्च होने लगा।
सारे दोस्त मुझे पढ़ाकू और चश्मीस कह कर चिढ़ाने लगे।
लोग मेरे बगल में बैठने से डरने लगे उन्हें ऐसा लगता कि मैं उन्हें बैठाकर कहानी सुनाने लगूँगी। मेरे अन्दर की लेखिका को यह धिक्कार एक उपहार लगा और मेरा संघर्ष जारी रहा।
लम्बे अन्तराल के बाद मेरी कहानी जब छपने हेतु पुनः भेजी संपादक का जवाब आया ‘‘कि आप अन्यथा न ले परन्तु अब आप अपनी रचनाएं प्रकाशन हेतु ना भेजंे। मेरे अन्दर आपकी रचनाओं को पढ़ने का साहस नहीं है।
कुछ दिनों बाद गलती से एक लोकल अखबार में मेरी रचना छप गयी तो उस अखबार को अपना दफ्तर बंद करना पड़ गया। आखिर पाठकों को भी रचना रास ना आयी। लेखिका ने अपनी सम्पूर्ण रचनाओं, लेखन सामाग्री की ठीक वैसे ही होली जला दी जैसे गाँधी जी ने अंगे्रजी वस्त्रों की होली जलायी थी।
अगले दिन जब मूड फ्रेश करने के लिए मैं टी0वी0 देख रही थी कि कौन बनेगा करोड़पति द्वितीय का प्रचार आ रहा था, ‘‘ ये है मि0 नजारे.............. डोन्ट लूज होप इज मोरल आफ द स्टोरी। कुछ दिनों बाद हैरी पोर्टर की लेखिका राांलिग के संघर्षो की कहानी पढ़ी।
फिर से लेखिका बनने का जोश जाग उठा। नये पुराने आइडियों को जोड़ कुछ इधर से कुछ उधर से चुरा कर एक कहानी की रचना कर डाली। घर में सभी मेरे इस लेखिका बनने से त्रस्त है।
उन्होनें भी हार मान ली है और यह हकीकत जान ली है कि मेरा कुछ नहीं हो सकता। लेकिन हमने नहीं हिम्मत हारी है मेरी लेखिका बनने की तैयारी है। रोज लगाते समाचार पत्र के दफ्तर के चक्कर और खोजते है नये-नये पब्लिसर्श के चक्कर। सब कहते है मुझमे क्या है खास, मेरी हर कहानी है बकवास।
भगवान यह आप निर्भर करता है कि आप कब मेरा भाग्य सुधारेगें और मेरे लेखन को सुधारेगें। मेरा चस्का पंचवर्षीय चुनाव नहीं बल्कि वर्तमान में होने वाले चुनावों की भाॅति रोज जीतता हारता है कभी दल बदलता तो कभी अपनी लेखन के भविष्य को सोचता है। बाकी लेखको से अनुरोध है मेरे हालात पर करे विचार और मेरी तरह ना ले चांस। टी0 वी0 और इलेक्ट्राॅनिक युग में आज लेखक तो बड़े उदास है।              
डाॅ0 साधना श्रीवास्तव, इलाहाबाद            



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