वाह रे समाज
वाह रे समाज
तुम ही जानो
अपनी माया
कहने को तो
सब कुछ है
सुनने को कानों
में रूई को
डाला है।
क्या राजा है
और क्या फकीरा....
सभी के ऊपर
है समाज का
घेरा
कथनी और करनी
में भटकता है
समाज
कि छोटी-छोटी बातों
पर बॅटता है
समाज
जो चाहे सड़कों
से महलों में
बिठा दे
और चाहे महलों
को पल में
धूल में मिला
दे
कितनी हो बाते
और तर्क तेरे
दामन में
कितनी ही किस्से
और कहानियाॅ
लोग क्यों समाज में
भीड.का हिस्सा
बन जाते है।
और के साथ
मिलकर दूसरों का
मजाक उड़ाते है।
समाज का हिस्सा
न बन ऐ
मुसाफिर
न बन समाज
का किस्सा.....
कुछ ऐसा कर
जा अपने हौंसला
से
दूसरों पर हॅसने
वाला वाह रे
समाज
तेरी वाह-वाही
कर जाये।
No comments:
Post a Comment