Friday, December 2, 2016

वाह रे समाज

वाह रे समाज
वाह रे समाज तुम ही जानो अपनी माया
कहने को तो सब कुछ है
सुनने को कानों में रूई को डाला है।
क्या राजा है और क्या फकीरा....
सभी के ऊपर है समाज का घेरा
कथनी और करनी में भटकता है समाज
 कि छोटी-छोटी बातों पर बॅटता है समाज
जो चाहे सड़कों से महलों में बिठा दे
और चाहे महलों को पल में धूल में मिला दे
कितनी हो बाते और तर्क तेरे दामन में
कितनी ही किस्से और कहानियाॅ
लोग क्यों समाज में भीड.का हिस्सा बन जाते है।
और के साथ मिलकर दूसरों का मजाक उड़ाते है।
समाज का हिस्सा बन मुसाफिर
बन समाज का किस्सा.....
कुछ ऐसा कर जा अपने हौंसला से
दूसरों पर हॅसने वाला वाह रे समाज
तेरी वाह-वाही कर जाये।


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