Wednesday, October 19, 2016

जीवन-साथी

जीवन-साथी
‘‘मैं कौन हूँ ?‘‘ मैनें तो यह कभी नहीं चाहा था। क्यों आज मैं इतनी अकेली हूँ.......मेरे सारे सपने क्यों टूट गये? जिसे मैं जान से ज्यादा चाहती थी वह ही मुझे छोड़ गया......जैसे बिना पतवार के नैया नदी की धारा के साथ डूबती-उतराती है वैसे ही अपराजिता की दशा थी।
अपराजिता नाम के अनुरूप पूरा विश्व तो जीत गयी थी। लेकिन अपनी जिदंगी हार गयी। धन-दौलत नाम सब तो पा गयी लेकिन अपनी मंजिल खो चुकी थी। उसका पति मोहक उसे छोड़कर हमेशा को भारत लौट गया था। पीछे छोड़ गया तो सिर्फ यादें कुछ खट्टी-कुछ मीठी यादें....... रोज की तरह जब आज वह ऑफिस से लौटी तो मोहक घर पर नहीं था। उसके हाथ एक चिट्ठी लगी। चिट्ठी में मोहक ने जाने की वजह दोनों के बीच हो रहे झगड़े को बताया था।
अपराजिता आज खुद को बहुत टूटा और हारा महसूस कर रही थीं।
 उसे समझ नहीं रहा था कि वह क्या करे? एक तरफ उसकी जिंदगी उसका प्यार मोहक उसकी खुशी थी, तो दूसरी तरफ अमेरिका में नौकरी और उभरता कैरियर.....मोहक के कहने पर ही वह अमेरिका आयी थी। मोहक ही अमेरिका में बसना चाहता था। उसके लिए ही उसने अपना घर, देश, सपने सब छोडे़ थे.... और अब मोहक ही भारत वापस लौटना चाहता था। सुबह ही तो इस बात पर दोनों में बहुत झगड़ा हुआ था। झगड़े तो आजकल रोज-रोज होने लगे थे। लेकिन उसे यह तो मालूम था कि मोहक उसे इस तरह अनजान देश में अकेला छोड़ देगा। बल्कि वह तो खुद आज मोहक को सरप्राइज देने के लिए अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर आयी थी।
                मोहक ने जाते-जाते अपना पता तक नहीं छोड़ा कि वह उसे खोज पाती। अचानक अपराजिता जैसे बेहोशी से जागी हो, उसने मोबाइल पर मोहक को फोन लगाया। फोन स्विच् ऑफ था। अपराजिता को समझ नहीं रहा था कि वह क्या करे? कहाँ जाये?
                कैसे मोहक का पता लगाये कि वह कहाँ गया? क्यों इस तरह अनजान देश में छोड़कर चला गया। वह तो एक बार फिर मोहक की शर्तो के समक्ष झुक गयी थी........मान गयी थी सब कुछ छोड़ने को फिर क्या मोहक इतना ही विश्वास करता है। कभी उसे मोहक पर गुस्सा आता तो कभी खुद की हालत पर तरस........बेसुध-बेजान सी अपराजिता की आंखों में अतीत गुजरने लगा। मोहक और अपराजिता की पहली मुलाकात.........मोहक अपनी मम्मी पापा के साथ उसकी मौसी की लड़की खुश्बु को देखने आया था। खुश्बु अपने नाम के अनुरूप हँसमुख, मासूम, चारों ओर हँसी फैलाने वाली उसका स्वभाव बिल्कुल अपराजिता से अलग था। अपराजिता के अनुशासन पसंद और खुश्बु तो नियमों को तोड़ना ही जानती थी। मोहक देखने तो खुश्बु को आया था, लेकिन अपराजिता के रूप और गुण के आगे पराजित हो गया। उसने अपने घरवालों से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि वह शादी अपराजिता से करेगा। खुश्बु में उसे कोई कमी या बुराई नजर नहीं आयी। मोहक अपने जीवनसाथी में जिन गुणों की खोज कर रहा था वह सब अपराजिता में थे। मोहक के इस फैसले से दोनो घरों में हड़कम्प मच गया। कोई इस फैसले से खुश नहीं था।
                बाबूजी ने दोनो हाथ जोड़कर माफी माँग ली कि वह ऐसे लड़के से अपने घर की किसी भी बेटी की शादी नहीं करेगें।
                उस रात घर पर बहुत झगड़ा हुआ। बिना सोचे समझे सब अपराजिता को डॉट रहे थे कि वह मोहक के आगे क्यों गयीं।
                उसके अपने घरवालें ही उसे नहीं समझ पा रहे थे। अपराजिता का मन किया कि वह मोहक का मुँह नोच ले........बहुत गुस्सा आया था। मोहक को खुश्बु पसंद नहीं आयी तो क्या उसकी बहन को क्यों शादी के लिए कहेगा।
                अपराजिता की अपनी दुनिया, अपने सपने थे। अपने पैरों पर खड़े होना, खुद को साबित करना था। बहुत कुछ करना था। इस घटना के बाद से एक तनाव सा रहने लगा। मौसी ने घर आना बंद कर दिया और पापा मम्मी भी बात-बात पर उपदेश दे देते।
                जिंदगी यूं ही गुजरने लगी। लोग इस बात को भूलने लगे। बीतते समय के साथ खुश्बु की शादी भी एक मल्टी नेशनल कम्पनी के मैनेजर के साथ हो गयी। इस घटना को वक्त के साथ सब भुल गये।
                लेकिन अपराजिता भूल पायी। उसे अपने घरवालों से यह उम्मीद नहीं थी। उसकी गलती होते हुए भी सबने उसे डॉटा था। जिन घरवालों को वह अपनी दुनिया समझती थी......मौसी, मम्मी, पापा, छोटा भाई सब अपराजिता को समझाते......यहाँ तक की खुश्बु ने भी उससे कुछ समय के लिए बोलना बन्द कर दिया।
                अपराजिता के लिए यह एक सदमें से कम नहीं था कि एक अजनबी के एक अजीबों गरीब प्रस्ताव के कारण बिना सोचे समझे सबने उसे गुनहगार घोषित कर दिया। जब देखो तब उसके पापा डॉटते-‘‘कोई सपनों का राजकुमार नहीं आयेगा, सफेद घोड़े पर सवार होकर......नौकरी करो....बाहर की दुनिया देखो घर में बैठकर थाली भर खाना खाने से कुछ नहीं होगा।‘‘ अपराजिता ने घर की बातों को सकारात्मक लेते हुए अपराजिता ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की।
                कालेज की पत्रिका लिखना शुरू किया। अपराजिता की कलम में जादू था। कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश धीरे-धीरे सब उसके लिखे लेखों और कहानियों को लोगों की प्रशंसा होने लगी। अब तक उसे अपनी छुपी हुई प्रतिभा का ज्ञान हो चुका था। उसने अपनी इस कला का उपयोग समाज की बुराइयों को दूर करने में किया। धीरे-धीरे उसके लेखों कहानियों को प्रतिष्ठा मिलने लगी एक उसकी एक दहेज पर लिखी कहानी को पुरस्कार मिला। अपराजिता बहुत खुश हो गयी।
                घर आकर उसने सबको बताया तो मम्मी ने कहा-‘‘अच्छा है लेकिन कथनी और करनी में बहुत फर्क होता है। जब तुम ससुराल जागी तो खूब सारा दहेज लेकर जाओगी। कोई मुफ्त में नहीं जाओगी। यह सब शौक तक तो ठीक है लेकिन सपने और हकीकत में बहुत अंतर होता है। कथनी करनी में बहुत अंतर है। यह तो आदर्शवादी बातें सिर्फ किताबों में अच्छी लगती है। अपराजिता धीरे-धीरे भावात्मक रूप से टूटने लगी। उम्र के जिस मोड़ पर उसे माँ-बाप, भाई-परिवार की जरूरत थी, उस समय उसका परिवार उसे प्यार उसे प्यार के बदले ताने दे रहा था इन सब परिस्थितियों के बीच सिर्फ एक चीज थी जो उसे सुख देते....सुकुन देते....सहारा देते वह थे उसके सपने। वह अपने परिवार केलिए समाज के लिए कुछ करना चाहती थी। उसकी पढ़ाई पूरी होगयी। अब उसने नौकरी खोजना शुरू की।
                वह समाज में अपना मुकाम हासिल करने का... धीरे-धीरे वह अपने ही घर में परायापन अकेलापन महसूस करने लगी।
                उसका भाई उससे छोटा था लेकिन घर के किसी भी अहम मुद्दे पर उसके भाई की राय ली जाती, उसकी नहीं।
                उसे कदम-कदम पर यह एहसास होने लगा कि वह एक लड़की है। इस आधुनिक समाज में विकास के नये कीर्तिमान स्थापित किये जा रहे थे, परंतु महिलाओं की वही स्थिति थी।
                अपराजिता की कोशिशे रंग लायी और उसे मुम्बई की अच्छी कम्पनी में जनसम्पर्क अधिकारी की नौकरी मिल गयी। नये शहर में नयी जिदंगी की शुरूआत नये सपनों की शुरूआत थी। जिदंगी के इस नये सफर में अचानक उसकी मुलाकात मोहक से हो गयी। वह अपनी कम्पनी के प्रोजेक्ट के सिलसिले में उसकी मुलाकात मोहक से हुयी।
                सालों के बाद अचानक मोहक से यूँ मुलाकात होगी अपराजिता ने कभी सोचा था। मोहक भी एक बार में ही उसे पहचान गया। अपराजिता खुद को अहज महसूस कर रही थी। जिस इंसान का चेहरा वह पूरी जिंदगी नहीं देखना चाहती थी वह उसके सामने था। इस चेहरे ने अपराजिता को अपने घर में ही पराया कर दिया था। वह नौकरी तो नहीं छोड़ सकती थी।
                अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में उसे मोहक से मिलना पड़ता हर रोज हर पल वह खुद से युद्ध लड़ती। बस यह सिर्फ काम की ही बात करती। वह प्रोजेक्ट का अंतिम दिन था। उसे मोहक से आखिरी बार मिलना था।
                आज जाने क्यों उसे कुछ खाली-खाली लग रहा था। शायद मोहक के साथ रहते-रहते उसे मोहक का साथ अच्छा लगने लगा था। मोहक एक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था। बहुत कम बोलना, सबकी मदद करना, सकारात्मक सोच, अनुशासन प्रिय और समय का पाबंद इतने गुण की अंगुली पर गिनो तो कम पड़ जाये।
                उस शाम जब प्रोजेक्ट रिपोर्ट जमा करके जाने लगी तो मोहक धीरे से बोला-‘‘अपराजिता जी हम आपसे कुछ कहना चाहते है?‘‘
‘‘जी कहिए‘‘
‘‘मैं आज भी आपका इंतजार कर रहा हूँ। जिस मोड़ पर मेरी जिन्दगी ठहरी आज भी वही पर है। मैनें आज तक शादी नहीं की........आपकी शालीनता, गंभीरता मुझे बहुत अच्छी लगी। मैने अपने जीवन साथी में जो सारी खुबियां चाही थी वह सब तुम्हारे अन्दर है। मेरे माँ-पिताजी ने कितनी लड़कियों से मिलवाया, लेकिन जाने वह कौन सी बात थी कि मुझे कोई अच्छी लगी। ना जाने मैं क्या कर रहा था? क्यों कर रहा था? तुमसे मिलने के बाद समझ आया कि तुम थी जो मेरे दिलो-दिमाग में बस गयी थी।‘‘
‘‘तुम क्या जानते हो? कैसा लगता है एक जब उसे नुमाइस की तरह घुमाया जाता है। अजनबी लोगों द्वारा उसका आकलन किया जाता। मोल-भाव करके.......उसे नकारा जाता। तुमको जरा भी एहसास है कि क्या गुजरती है लड़कियों पर तुम पत्थर दिल हो। तुमने एक बार भी यह नहीं सोचा कि खुश्बु और उस जैसी  लड़कियों को तुम देखने जाते और बिना वजह बिना उनकी किसी कमी के उनको तुम अस्वीकार कर देते। मुझसे भी प्यार का दावा करते हो? लेकिन क्या बीती मुझपर तुम्हे एहसास है। मेरे घरवाले मुझसे नफरत करने लगे। परायी हो गयी मै उनके लिए और तुम इसे प्यार कहते हो? नफरत करती हूँ मैं तुमसे......नफरत करती हूँ..............मैं तुमसे नफरत‘‘...........आज बरसों का आक्रोश गुस्सा बनकर फूट पड़ा था। अपराजिता चीख रही थी। मोहक ने शान्त स्वर में उत्तर दिया-‘‘सबको अपनी जीवनसाथी चुनने का हक है। मैं मानता हूँ मैनें बहुत सी लड़कियों का अपमान किया। जाने-अनजाने लेकिन मै क्या करूँ? मैं जब तुम्हें पसंद करता तो क्यों किसी लड़की की पूरी जिन्दगी खराब करूँ। मै कभी नहीं जाता लड़की देखने लड़कीवाले खुद अपनी बेटी की तस्वीर भेजते.......तो कभी किसी को दुख नहीं देना चाहता। इसलिए तुम्हारे परिवारवालों के इनकार के बाद मैनें कभी कुछ नहीं कहा। मैनें तो वह शहर भी छोड़ दिया था। यह तो किस्मत का खेल था कि तुमसे इस तरह से मुलाकात हुयी। अगर मैं आज तुमसे अपने दिल की बात कहता तों खुद को कभी माफ नहीं कर पाता। क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमारा तरह से मिलना ईश्वर की मर्जी की ओर इशारा करता है‘‘
मोहक के तर्को के आगे वह निरूत्तर हो गयी। बिना कुछ बोले वह वहाँ से उठ कर चली गयी। उस रात अपराजिता को नींद नही आयी। उसने ठण्डे दिमाग से मोहक की बातों को सोचा तो सही भी लगी कि किसी दबाव में आकर शादी करने से अच्छा तो इनकार है। कुछ पल का दर्द जिन्दगी की खुशी दे जाता है। क्योंकि अनचाहे या मजबूरी के रिश्ते हमेशा तकलीफ देते है। आज खुश्बु अपने पति के साथ बहुत खुश थ। इतना तो वह मोहक के साथ खुश नहीं रह पाती।
अगले दिन मोहक के अच्छे से गुड मार्निंग मैसेज के साथ आंख खुली। बीतते समय के साथ मोहक भी उसकी जरूरत बन गया मोहक ने उसके रूप और गुण को उससे भी बेहतर समझा। अपराजिता को उसके लेखन, उसके व्यक्तित्व हर पहलू को निखारने में योगदान दिया। अपराजिता की खुद से पहचान करायी। अपराजिता का आत्मविश्वास बढ़ गया। उसका रूप निखर गया। जिस प्यार जिस अपनेपन की तलाश उसे बचपन से थी। वह सब मोहक ने बिन माँगे दे दिया था।
दोनों ने पूरा जीवन साथ बीताने का फैसला कर लिया। जिसे दिन अपराजिता ने यह बात अपने घर वालों से कही......उस दिन उसके घर में बहुत झगड़ा हुआ। पापा ने बिना कुछ समझे ही मोहक को अयोग्य घोषित करते हुये शादी से इनकार कर दिया। माँ ने पापा की बातों का मुक समर्थन किया। चाचा जी ने अपराजिता के इस कदम को साची-समझी साजिश मान लिया। पहले तो अपराजिता ने घरवालों को समझाने की कोशिश की। परंतु वह माने। इधर मोहक के घरवालों ने अपराजिता को बहु के रूप में सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्हें तो इस बात की खुशी थी कि मोहक ने विवाह के लिए हाँ कर दी।
                मोहक अपने मम्मी पापा के साथ खुद गया था, अपराजिता का हाथ उसके पापा से माँगने। उसने अपराजिता के पापा से कहा-‘‘अंकल जी आप हमें क्यों पसंद नहीं करते? क्यों नाराज रहते है मुझसे? मैं अपराजिता के व्यक्तित्व से प्रभावित हूँ, उसे पसंद करता.......उससे शादी करना चाहता हूँ। अपराजिता व्यक्तित्व मेरे स्वभाव से मेल खाता है। मैं मानता हूँ कि 3 साल पहले मैं खुश्बु को अपना जीवन-साथी बनाने गया था। लेकिन अंकल वह मेरे साथ खुश नहीं रहती और मैं उसके साथ क्योंकि हमारा व्यक्तित्व मेल नहीं खता। उसका हँसमुख, भोला और मासूम स्वभाव.......मेरे गम्भीर, अनुशासनप्रिय स्वभाव के कारण उसके शौक दम तोड़ देते। मैं भी खिलाफ हूँ लड़कियों को देखकर इनकार करने या जबरदस्ती कमियां निकालने के। समाज में यह हक लड़की को भी है कि अगर लड़का पसंद आये तो वह मना करे। कुछ लड़कियां ऐसा करती भी है लेकिन यह उनके घर वालों को ही पसंद नही आता। मैनें जबसे अपराजिता को देखा तो लगा कि जो गुण मुझे अपनी जीवनसाथी में चाहिए थे वह सब इसमें है। आपके इनकार के बाद मैनें कोई जबरदस्ती नहीं की कोई दूसरी लड़की देखी। लेकिन दो चार लड़की वालो ने अच्छा घर-वर देखकर किसी बहाने से मुझे लड़कियों से मिलवाया। जब ईश्वर ने प्रोजेक्ट के सिलसिले में मुझे अपराजिता से मिलवाया। तब मैं ईश्वर के दिये मौके को खोना नहीं चाहता। अब आखिरी फैसला आपका ही होगा।‘‘ मोहक की बातों ने एक बार अपराजिता के पापा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया। धीरे-धीरे समय बीता और अपराजिता की मर्जी को परिवार वालों ने भी स्वीकार कर लियया। दोनों विवाह बन्धन में बंध गये। अचानक मोबाइल की घंटी ने अपराजिता की श्रृखंला को विराम दे दिया। फोन मोहक की माँ का था वह बोली-‘‘हेलो बेटा‘‘ ‘‘माँ क्या बात है?‘‘ आप कुछ परेशान लग रही है? हाँ बेटा तेरे पिताजी को दिल का दौरा पड़ा है......माँ अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाती उससे पहले ही अपराजिता ने घबरा कर पूछा-‘‘माँ कब‘‘? पिताजी कहाँ है? कैसे है? कब हुआ यह सब?‘‘ नहीं बेटा चिन्ता की कोई बात नहीं है। वह अब ठीक है, अभी भी अस्पताल में हैं। वह तुमसे और मोहक से मिलना चाहते है। बस तुम जल्दी से भारत जाओ। मोहक का फोन नहीं लग रहा है।‘‘ हाँ माँ मैं जॉऊगी। आप चिन्ता करो हम जल्दी से जल्दी आयेगें।‘‘ अपराजिता अजीब दुविधा में फँस गयी। मोहक का पता नहीं.......क्या करे? कहाँ जाये? उसने फिर मोहक को फोन लगाया। फोन स्विच ऑफ........... अपराजिता को समझ नहीं रहा था कि क्या करे? कैसे मोहक को खोजे। अचानक दरवाजे की घंटी बजी। उसने झांककर देखा मोहक खड़ा था। उसने दरवाजा खोला और माहक के गले लग गयी। कोई कुछ बोल पाता उससे पहले ही उसके आंसुओ से मोहक का सीना भीग गया। मोहक अन्दर गया। उसके गाल पर दो चपत लगा कर बोला-‘‘यह क्या हाल बना लिया है पगली‘‘ पगली हाँ हूँ.......क्यों छोड़ कर गये थे मुझे......तुम्हें क्या लगता है कि मैं खुश रहूँगीं..........तुम्हारे बिना............जब जी चाहा अपना लिया...........जब जी चाहा ठुकरा दिया।‘‘ ‘‘सॉरी जान‘‘ मोहक ने दोनों कान पकड़कर बोला। ‘‘सॉरी का क्या मतलब होता है? मैं मर गयी होती तो‘‘ अच्छा इतनी आसानी से कहाँ पीछा छोड़ोगी तुम लेखिका जो ठहरी। अपने इमोशनल डॉयलॉग से मेरी जान लोगी।‘‘ तुम्हे मेरी भावनाएं डॉयलाग लगती। तुम्हारे लिए आज मैं जॉब छोड़ कर आयी........और तुमनें मुझे छोड़ने में एक पल की भी देर लगायी। ‘‘सॉरी जान मैं भी नहीं जी सकता तुम्हारे बिना........नहीं जाना मुझे देश.........तुम जहाँ मेरे साथ हो वहीं मेरा घर होगा। एक रात की दूरी ने मुझे बता दिया कि तुम मेरे लिए कितनी महत्वपूर्ण हो क्या अपने मोहक को माफ नहीं करोगी।‘‘ मोहक ने अपराजिता के दोनों हाथ को पकड़कर कहा। अपराजिता ने कहा-‘‘नहीं मोहक अब हम अपने देश अपने घर वापस चलेगें। तुम मिल गये और अब कुछ नहीं चाहिए।‘‘ अपराजिता ने माँ के फोन के बारे में बताया। जल्दी ही दोनों भारत वापस गये। दोनों समझ गये थे सच्चे जीवनसाथी एक-दूसरे की खुशी के लिए जीते है। समर्पण और प्यार के बीच अहं की कोई जगह नहीं होती।
                सच्चे जीवनसाथी एक-दूसरे की भावनाओें का आदर करते है। तमाम झगड़ों के बाद भी उनका प्यार कम नहीं होता।
                                                                                                                         नाम- डॉ साधना श्रीवास्तव



No comments:

Post a Comment