Tuesday, October 25, 2016
मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र
मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण और मानवीय समानता स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण प्रयास है । वैश्विक स्तर पर देशों में एकजुटता और मानवाधिकारों के लिए जागरूता आवश्यक है। वर्तमान हिंसा, आतंकवाद, अत्याचार के विरूद्ध सफल प्रयोग की आधारशिला मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पूरे विश्व में मानवाधिकार के लिए कुछ निर्देश और मार्गदर्शन का प्रयास किया।
वास्तव में देखा में जाये तो संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में मानवाधिकार के लिए कोई विशेष से या अलग के प्रावधान नहीं है। परन्तु चार्टर की विभिन्न धाराओं में से कुछ धाराओं में मानवाधिकार के बारें में उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समय- समय पर जो प्रयास विश्व स्तर पर किये गये है वह निश्चय ही मानवाधिकार के संरक्षण में विशेष रूप से सराहनीय प्रयास है । यद्यपि चार्टर में अलग से मानवाधिकार के लिए कोई घोषणा या विशेष दस्तावेज तो नहीं लिखा गया है परन्तु अनेक स्थानों पर इतने स्पष्ट शब्दों में मानवाधिकार के लिए दशा, दिशा और खुले शब्दों में मानवाधिकारों के संरक्षण और अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया गया है । यही कारण है जब भी मानवाधिकारों की बात आती है तब मानव अधिकारों के सार्वभौम घोषणा पत्र का जिक्र आवश्य आता है। मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र वैश्विक आधार पर सर्वमान्य और प्रचलित है।
संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर की प्रस्तावना में : ‘‘ मानव के मौलिक अधिकारों, मानव के व्यक्ति के गौरव तथा महत्व मे, तथा पुरूष एवं स्त्रियों के समान अधिकारों में‘‘ विश्वास प्रकट किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक और सामाजिक परिषद को मानवाधिकारों के संरक्षण का दायित्व दिया गया।
वही संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अनुच्छेद 68 के अधीन यह परिषद मानवाधिकारों के लिए आयोग का गठन कर या अन्य आयोगों को स्थापित कर सकती थी।
इस अनुच्छेद 68 को ही आधार मान कर परिषद द्वारा 12 फरवरी 1946 को एक आयोग अनुमोदित किया गया इस प्रकार 1946 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुयी। चूंकि राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ाना जरूरी है, अतः संयुक्त राष्ट्रों के सदस्य देशों की जनताओं के बुनियादी मानव अधिकारों, मानव व्यक्तित्व के गौरव और योग्यता में और नर-नारियों के समान अधिकारों में अपने विश्वास को अधिकार-पत्र में विस्तृत रूप से वर्णित किया जिससे अधिक व्यापक रूप से मानवीय स्वतंत्रता के अंतर्गत सामाजिक प्रगति एवं जीवन के बेहतर स्तर को ऊंचा किया जाएं और संयुक्त राष्ट्रों के सहयोग से मानव अधिकारों और बुनियादी आजादियों के प्रति सार्वभौम सम्मान की वृद्धि करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य किया गया।
मानव अधिकारो का सार्वभौम घोषणा ;न्दपअमतेंस क्मबसंतंजपवद व िभ्नउंद त्पहीजेद्ध
ज्ञातव्य हो कि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते है । मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य मानवीय अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को ही माना गया। 1946 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना के बाद जनवरी 1947 में आयोग की प्रथम बैठक हुयी । इस बैठक में श्रीमती इलेनार रूजवेल्ट ;भूतपूर्व राष्ट्रपति फ्रेकलिन डी0 रूजवेल्ट की विधवा द्ध को अध्यक्ष चुना गया । यहाॅ से मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा पत्र के विचार को आधार मिला। उसके बाद से काफी वक्त तक विचार विमर्श होता रहा कुछ समरू- समय पर बैठक भी होती रही। विचार मंथन के बाद 7 दिसम्बर 1948 को एक प्रारूप स्वीकार किया गया और 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने पेरिस में मानवाधिकारों के विश्वव्यापी घोषणापत्र को स्वीकार कर लिया गया।
इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा को अंगीकार किया गया । इसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मानव अधिकार दिवस मानया जाता है।
मानव अधिकारो का सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा में प्रस्तावना सहित 30 अनुच्छेद है । यह अनुच्छेद विश्व में मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में मार्गदर्शक का कार्य करते है।
इनमें न केवल नागरिक और राजनीतिक आधिकारों को विस्तारपूर्वक बताया गया वरन मानव के सामाजिक और अधिकारों का भी विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया।
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा की चुनौती - मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा एक आाधार और प्रयास था विश्व स्तर पर मानवीय संवेदनाओं को जागने का सकरात्मक प्रयास था। इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह कोई कानूनी लेखपत्र तो नहीे है न ही इसे वैधानिक ताकत प्राप्त है।
यह मानवीय अधिकारोें की व्याख्या तो कर देता है परन्तु इन्हें कार्यान्वित करने के लिए कोई विशेष साधन या व्यवस्था का प्रावधान नहीे है। इसके साथ ही यह वैश्विक स्तर पर कोई सन्धि या उत्तरदायित्व की व्यवस्था करता है यह मात्र एक मौलिक सिद्धांतों का घोषणापत्र मात्र है, जिसपर सदस्यों ने औपचारिक रूप से मतदान किया है। अतः अभी भी वैश्विक स्तर पर सभी के मानवाधिकार की रक्षा हो यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा का महत्व -
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा से विश्व के सभी देशों को मानवाधिकार के संदर्भ में प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। विश्व के लगभग सभी देश मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा के बाद से वैश्विक रूप से मानवाधिकारों को समझ सके और एकमत राय से मानव के अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए प्रयत्नशील हुए हुए। सभी देशों ने अनपे अपने देश के संविधान और कानूनों में अधिकार का दर्जा दिलाने का प्रयास किया।
10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया गया। यह सामान्य सभा घोषित करती है कि मानव अधिकारों की यह सार्वभौम घोषणा सभी देशों और सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा का प्रयास है । जो मानवाधिकार की प्राप्ति की सफलता के प्रति एक आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करती है। इसका उद्देश्य यह है कि प्रत्येक देश, समाज और व्यक्ति के हितों , अधिकारों और आजादियों के प्रति सम्मान की भावना जाग्रत हो । इसमें 30 अनुच्छेद है जिनमें ऐसे राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय उपाय और दिशा निर्देश है जिनसे सदस्य देशों की जनता तथा उनके द्वारा अधिकृत प्रदेशों की जनता इन अधिकारों की सार्वभौम स्वीकृति दे और उनका पालन कराएं। प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
संदर्भ ग्रन्थ और उपयोगी पुस्तक
ऽ गौतम रमेश प्रसाद और सिंह पृथ्वीपाल सिंह, भारत में मानव अधिकार ;उल्लंघन, संरक्षण, क्रियान्वयन एवं उपचारद्धविश्वविद्यालय प्रकाशन,सागर म0प्र0 (2001)
ऽ धर्माधिकारी देवदतत माधव, मानव अधिकार क्यों और कैसे ?साहित्य संगम, इलाहाबाद (2010)
ऽ कौशिक, पीताम्बर दत्त, कल्याणी पब्लिशर्स, नोएडा
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण और मानवीय समानता स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण प्रयास है । वैश्विक स्तर पर देशों में एकजुटता और मानवाधिकारों के लिए जागरूता आवश्यक है। वर्तमान हिंसा, आतंकवाद, अत्याचार के विरूद्ध सफल प्रयोग की आधारशिला मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पूरे विश्व में मानवाधिकार के लिए कुछ निर्देश और मार्गदर्शन का प्रयास किया।
वास्तव में देखा में जाये तो संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में मानवाधिकार के लिए कोई विशेष से या अलग के प्रावधान नहीं है। परन्तु चार्टर की विभिन्न धाराओं में से कुछ धाराओं में मानवाधिकार के बारें में उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समय- समय पर जो प्रयास विश्व स्तर पर किये गये है वह निश्चय ही मानवाधिकार के संरक्षण में विशेष रूप से सराहनीय प्रयास है । यद्यपि चार्टर में अलग से मानवाधिकार के लिए कोई घोषणा या विशेष दस्तावेज तो नहीं लिखा गया है परन्तु अनेक स्थानों पर इतने स्पष्ट शब्दों में मानवाधिकार के लिए दशा, दिशा और खुले शब्दों में मानवाधिकारों के संरक्षण और अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया गया है । यही कारण है जब भी मानवाधिकारों की बात आती है तब मानव अधिकारों के सार्वभौम घोषणा पत्र का जिक्र आवश्य आता है। मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र वैश्विक आधार पर सर्वमान्य और प्रचलित है।
संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर की प्रस्तावना में : ‘‘ मानव के मौलिक अधिकारों, मानव के व्यक्ति के गौरव तथा महत्व मे, तथा पुरूष एवं स्त्रियों के समान अधिकारों में‘‘ विश्वास प्रकट किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक और सामाजिक परिषद को मानवाधिकारों के संरक्षण का दायित्व दिया गया।
वही संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अनुच्छेद 68 के अधीन यह परिषद मानवाधिकारों के लिए आयोग का गठन कर या अन्य आयोगों को स्थापित कर सकती थी।
इस अनुच्छेद 68 को ही आधार मान कर परिषद द्वारा 12 फरवरी 1946 को एक आयोग अनुमोदित किया गया इस प्रकार 1946 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुयी। चूंकि राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ाना जरूरी है, अतः संयुक्त राष्ट्रों के सदस्य देशों की जनताओं के बुनियादी मानव अधिकारों, मानव व्यक्तित्व के गौरव और योग्यता में और नर-नारियों के समान अधिकारों में अपने विश्वास को अधिकार-पत्र में विस्तृत रूप से वर्णित किया जिससे अधिक व्यापक रूप से मानवीय स्वतंत्रता के अंतर्गत सामाजिक प्रगति एवं जीवन के बेहतर स्तर को ऊंचा किया जाएं और संयुक्त राष्ट्रों के सहयोग से मानव अधिकारों और बुनियादी आजादियों के प्रति सार्वभौम सम्मान की वृद्धि करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य किया गया।
मानव अधिकारो का सार्वभौम घोषणा ;न्दपअमतेंस क्मबसंतंजपवद व िभ्नउंद त्पहीजेद्ध
ज्ञातव्य हो कि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते है । मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य मानवीय अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को ही माना गया। 1946 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना के बाद जनवरी 1947 में आयोग की प्रथम बैठक हुयी । इस बैठक में श्रीमती इलेनार रूजवेल्ट ;भूतपूर्व राष्ट्रपति फ्रेकलिन डी0 रूजवेल्ट की विधवा द्ध को अध्यक्ष चुना गया । यहाॅ से मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा पत्र के विचार को आधार मिला। उसके बाद से काफी वक्त तक विचार विमर्श होता रहा कुछ समरू- समय पर बैठक भी होती रही। विचार मंथन के बाद 7 दिसम्बर 1948 को एक प्रारूप स्वीकार किया गया और 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने पेरिस में मानवाधिकारों के विश्वव्यापी घोषणापत्र को स्वीकार कर लिया गया।
इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा को अंगीकार किया गया । इसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मानव अधिकार दिवस मानया जाता है।
मानव अधिकारो का सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा में प्रस्तावना सहित 30 अनुच्छेद है । यह अनुच्छेद विश्व में मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में मार्गदर्शक का कार्य करते है।
इनमें न केवल नागरिक और राजनीतिक आधिकारों को विस्तारपूर्वक बताया गया वरन मानव के सामाजिक और अधिकारों का भी विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया।
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा की चुनौती - मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा एक आाधार और प्रयास था विश्व स्तर पर मानवीय संवेदनाओं को जागने का सकरात्मक प्रयास था। इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह कोई कानूनी लेखपत्र तो नहीे है न ही इसे वैधानिक ताकत प्राप्त है।
यह मानवीय अधिकारोें की व्याख्या तो कर देता है परन्तु इन्हें कार्यान्वित करने के लिए कोई विशेष साधन या व्यवस्था का प्रावधान नहीे है। इसके साथ ही यह वैश्विक स्तर पर कोई सन्धि या उत्तरदायित्व की व्यवस्था करता है यह मात्र एक मौलिक सिद्धांतों का घोषणापत्र मात्र है, जिसपर सदस्यों ने औपचारिक रूप से मतदान किया है। अतः अभी भी वैश्विक स्तर पर सभी के मानवाधिकार की रक्षा हो यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा का महत्व -
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा से विश्व के सभी देशों को मानवाधिकार के संदर्भ में प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। विश्व के लगभग सभी देश मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा के बाद से वैश्विक रूप से मानवाधिकारों को समझ सके और एकमत राय से मानव के अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए प्रयत्नशील हुए हुए। सभी देशों ने अनपे अपने देश के संविधान और कानूनों में अधिकार का दर्जा दिलाने का प्रयास किया।
10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया गया। यह सामान्य सभा घोषित करती है कि मानव अधिकारों की यह सार्वभौम घोषणा सभी देशों और सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा का प्रयास है । जो मानवाधिकार की प्राप्ति की सफलता के प्रति एक आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करती है। इसका उद्देश्य यह है कि प्रत्येक देश, समाज और व्यक्ति के हितों , अधिकारों और आजादियों के प्रति सम्मान की भावना जाग्रत हो । इसमें 30 अनुच्छेद है जिनमें ऐसे राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय उपाय और दिशा निर्देश है जिनसे सदस्य देशों की जनता तथा उनके द्वारा अधिकृत प्रदेशों की जनता इन अधिकारों की सार्वभौम स्वीकृति दे और उनका पालन कराएं। प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
संदर्भ ग्रन्थ और उपयोगी पुस्तक
·
http://www.humanrights.com/voices-for-human-rights/human-rights-organizations/non-governmental.html
·
http://www.humanrights.com/voices-for-human-rights/human-rights-organizations/non-governmental.htmlekuokf/kdkj
laxBuksa
ऽ फड़िया, डाॅ0 कुलदीप, प्रेस कानून और पत्रकारिता, प्रतियागिता साहित्य सीरीज, आगरा (2015)ऽ गौतम रमेश प्रसाद और सिंह पृथ्वीपाल सिंह, भारत में मानव अधिकार ;उल्लंघन, संरक्षण, क्रियान्वयन एवं उपचारद्धविश्वविद्यालय प्रकाशन,सागर म0प्र0 (2001)
ऽ धर्माधिकारी देवदतत माधव, मानव अधिकार क्यों और कैसे ?साहित्य संगम, इलाहाबाद (2010)
ऽ कौशिक, पीताम्बर दत्त, कल्याणी पब्लिशर्स, नोएडा
राष्ट्र संघ , संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस
राष्ट्र संघ
राष्ट्र संघ प्रथम विश्व युद्ध के बाद अस्तिव में आया। वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध ने दुनिया यह एहसास दिला दिया था कि शांति की कितनी आवश्यकता है। 10 जनवरी 1920 को औपचारिक रूप से राष्ट्र संघ की स्थापना हुयी थी।
प्ररन्तु विश्व का यह र्दुभाग्य था कि राष्ट्र संघ अपने शांति के लक्ष्य में असफल रहा और जिसका परिणाम दूसरा विश्व युद्ध था।
संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस
विश्व जब दो-दो विश्व युद्धों की त्रासदी झेल चुका और शांति के महत्व को समझने लगा तब उसने राष्ट्रीय और अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे प्रसाय शुरू किये जिनसे वह जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं और दशाओं को प्राप्त कर सके । ऐसे ही प्रयासों का परिणाम संयुक्त राष्ट्र संघ है। जब विश्व ने प्रथम विश्वयुद्ध का संकट देखा तो युद्ध के समाप्त होने के बाद लींग आॅफ नेशन बना जो शांति और वैश्विक सौहार्द के लिए था । विश्व उसके महत्व को समझा न सका और लींग आॅफ नेशन की असफलता का परिणाम दूसरा विश्व युद्ध रहा । लेकिन दूसरे विश्व युद्ध की विभित्सिका ने पुरी दुनिया को शांति के महत्व को समझा दिया । जिसका परिणाम का था कि सम्पूर्ण विश्व एकमत हो गया वैश्विक संस्थाओं के महत्व और आवश्यकता को समझने मे। 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ अस्तिव में आया । संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालयमैनहैटन टापू, न्यूयॉर्क शहर, न्यूयॉर्क राज्य, संयुक्त राज्य में स्थित है।
संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर की प्रस्तावना में : ‘‘ मानव के मौलिक अधिकारों, मानव के व्यक्ति के गौरव तथा महत्व मे, तथा पुरूष एवं स्त्रियों के समान अधिकारों में‘‘ विश्वास प्रकट किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक और सामाजिक परिषद को मानवाधिकारों के संरक्षण का दायित्व दिया गया।
वही संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अनुच्छेद 68 के अधीन यह परिषद मानवाधिकारों के लिए आयोग का गठन कर या अन्य आयोगों को स्थापित कर सकती थी।
इस अनुच्छेद 68 को ही आधार मान कर परिषद द्वारा 12 फरवरी 1946 को एक आयोग अनुमोदित किया गया इस प्रकार 1946 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुयी। चूंकि राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ाना जरूरी है, अतः संयुक्त राष्ट्रों के सदस्य देशों की जनताओं के बुनियादी मानव अधिकारों, मानव व्यक्तित्व के गौरव और योग्यता में और नर-नारियों के समान अधिकारों में अपने विश्वास को अधिकार-पत्र में विस्तृत रूप से वर्णित किया जिससे अधिक व्यापक रूप से मानवीय स्वतंत्रता के अंतर्गत सामाजिक प्रगति एवं जीवन के बेहतर स्तर को ऊंचा किया जाएं और संयुक्त राष्ट्रों के सहयोग से मानव अधिकारों और बुनियादी आजादियों के प्रति सार्वभौम सम्मान की वृद्धि करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य किया गया।
राष्ट्र संघ प्रथम विश्व युद्ध के बाद अस्तिव में आया। वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध ने दुनिया यह एहसास दिला दिया था कि शांति की कितनी आवश्यकता है। 10 जनवरी 1920 को औपचारिक रूप से राष्ट्र संघ की स्थापना हुयी थी।
प्ररन्तु विश्व का यह र्दुभाग्य था कि राष्ट्र संघ अपने शांति के लक्ष्य में असफल रहा और जिसका परिणाम दूसरा विश्व युद्ध था।
संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस
विश्व जब दो-दो विश्व युद्धों की त्रासदी झेल चुका और शांति के महत्व को समझने लगा तब उसने राष्ट्रीय और अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे प्रसाय शुरू किये जिनसे वह जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं और दशाओं को प्राप्त कर सके । ऐसे ही प्रयासों का परिणाम संयुक्त राष्ट्र संघ है। जब विश्व ने प्रथम विश्वयुद्ध का संकट देखा तो युद्ध के समाप्त होने के बाद लींग आॅफ नेशन बना जो शांति और वैश्विक सौहार्द के लिए था । विश्व उसके महत्व को समझा न सका और लींग आॅफ नेशन की असफलता का परिणाम दूसरा विश्व युद्ध रहा । लेकिन दूसरे विश्व युद्ध की विभित्सिका ने पुरी दुनिया को शांति के महत्व को समझा दिया । जिसका परिणाम का था कि सम्पूर्ण विश्व एकमत हो गया वैश्विक संस्थाओं के महत्व और आवश्यकता को समझने मे। 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ अस्तिव में आया । संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालयमैनहैटन टापू, न्यूयॉर्क शहर, न्यूयॉर्क राज्य, संयुक्त राज्य में स्थित है।
संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर की प्रस्तावना में : ‘‘ मानव के मौलिक अधिकारों, मानव के व्यक्ति के गौरव तथा महत्व मे, तथा पुरूष एवं स्त्रियों के समान अधिकारों में‘‘ विश्वास प्रकट किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक और सामाजिक परिषद को मानवाधिकारों के संरक्षण का दायित्व दिया गया।
वही संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अनुच्छेद 68 के अधीन यह परिषद मानवाधिकारों के लिए आयोग का गठन कर या अन्य आयोगों को स्थापित कर सकती थी।
इस अनुच्छेद 68 को ही आधार मान कर परिषद द्वारा 12 फरवरी 1946 को एक आयोग अनुमोदित किया गया इस प्रकार 1946 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुयी। चूंकि राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ाना जरूरी है, अतः संयुक्त राष्ट्रों के सदस्य देशों की जनताओं के बुनियादी मानव अधिकारों, मानव व्यक्तित्व के गौरव और योग्यता में और नर-नारियों के समान अधिकारों में अपने विश्वास को अधिकार-पत्र में विस्तृत रूप से वर्णित किया जिससे अधिक व्यापक रूप से मानवीय स्वतंत्रता के अंतर्गत सामाजिक प्रगति एवं जीवन के बेहतर स्तर को ऊंचा किया जाएं और संयुक्त राष्ट्रों के सहयोग से मानव अधिकारों और बुनियादी आजादियों के प्रति सार्वभौम सम्मान की वृद्धि करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य किया गया।
Wednesday, October 19, 2016
जीवन-साथी
जीवन-साथी
‘‘मैं
कौन हूँ ?‘‘ मैनें
तो यह कभी
नहीं चाहा था।
क्यों आज मैं
इतनी अकेली हूँ.......मेरे सारे
सपने क्यों टूट
गये? जिसे मैं
जान से ज्यादा
चाहती थी वह
ही मुझे छोड़
गया......जैसे बिना
पतवार के नैया
नदी की धारा
के साथ डूबती-उतराती है वैसे
ही अपराजिता की
दशा थी।
अपराजिता
नाम के अनुरूप
पूरा विश्व तो
जीत गयी थी।
लेकिन अपनी जिदंगी
हार गयी। धन-दौलत नाम
सब तो पा
गयी लेकिन अपनी
मंजिल खो चुकी
थी। उसका पति
मोहक उसे छोड़कर
हमेशा को भारत
लौट गया था।
पीछे छोड़ गया
तो सिर्फ यादें
कुछ खट्टी-कुछ
मीठी यादें....... रोज
की तरह जब
आज वह ऑफिस
से लौटी तो
मोहक घर पर
नहीं था। उसके
हाथ एक चिट्ठी
लगी। चिट्ठी में
मोहक ने जाने
की वजह दोनों
के बीच हो
रहे झगड़े को
बताया था।
अपराजिता
आज खुद को
बहुत टूटा और
हारा महसूस कर
रही थीं।
उसे
समझ नहीं आ
रहा था कि
वह क्या करे?
एक तरफ उसकी
जिंदगी उसका प्यार
मोहक उसकी खुशी
थी, तो दूसरी
तरफ अमेरिका में
नौकरी और उभरता
कैरियर.....मोहक के
कहने पर ही
वह अमेरिका आयी
थी। मोहक ही
अमेरिका में बसना
चाहता था। उसके
लिए ही उसने
अपना घर, देश,
सपने सब छोडे़
थे.... और अब
मोहक ही भारत
वापस लौटना चाहता
था। सुबह ही
तो इस बात
पर दोनों में
बहुत झगड़ा हुआ
था। झगड़े तो
आजकल रोज-रोज
होने लगे थे।
लेकिन उसे यह
तो मालूम था
कि मोहक उसे
इस तरह अनजान
देश में अकेला
छोड़ देगा। बल्कि
वह तो खुद
आज मोहक को
सरप्राइज देने के
लिए अपनी नौकरी
से इस्तीफा देकर
आयी थी।
मोहक ने
जाते-जाते अपना
पता तक नहीं
छोड़ा कि वह
उसे खोज पाती।
अचानक अपराजिता जैसे
बेहोशी से जागी
हो, उसने मोबाइल
पर मोहक को
फोन लगाया। फोन
स्विच् ऑफ था।
अपराजिता को समझ
नहीं आ रहा
था कि वह
क्या करे? कहाँ
जाये?
कैसे मोहक
का पता लगाये
कि वह कहाँ
गया? क्यों इस
तरह अनजान देश
में छोड़कर चला
गया। वह तो
एक बार फिर
मोहक की शर्तो
के समक्ष झुक
गयी थी........मान
गयी थी सब
कुछ छोड़ने को
फिर क्या मोहक
इतना ही विश्वास
करता है। कभी
उसे मोहक पर
गुस्सा आता तो
कभी खुद की
हालत पर तरस........बेसुध-बेजान सी
अपराजिता की आंखों
में अतीत गुजरने
लगा। मोहक और
अपराजिता की पहली
मुलाकात.........मोहक अपनी
मम्मी पापा के
साथ उसकी मौसी
की लड़की खुश्बु
को देखने आया
था। खुश्बु अपने
नाम के अनुरूप
हँसमुख, मासूम, चारों ओर
हँसी फैलाने वाली
उसका स्वभाव बिल्कुल
अपराजिता से अलग
था। अपराजिता के
अनुशासन पसंद और
खुश्बु तो नियमों
को तोड़ना ही
जानती थी। मोहक
देखने तो खुश्बु
को आया था,
लेकिन अपराजिता के
रूप और गुण
के आगे पराजित
हो गया। उसने
अपने घरवालों से
स्पष्ट शब्दों में कह
दिया कि वह
शादी अपराजिता से
करेगा। खुश्बु में उसे
कोई कमी या
बुराई नजर नहीं
आयी। मोहक अपने
जीवनसाथी में जिन
गुणों की खोज
कर रहा था
वह सब अपराजिता
में थे। मोहक
के इस फैसले
से दोनो घरों
में हड़कम्प मच
गया। कोई इस
फैसले से खुश
नहीं था।
बाबूजी ने दोनो
हाथ जोड़कर माफी
माँग ली कि
वह ऐसे लड़के
से अपने घर
की किसी भी
बेटी की शादी
नहीं करेगें।
उस रात
घर पर बहुत
झगड़ा हुआ। बिना
सोचे समझे सब
अपराजिता को डॉट
रहे थे कि
वह मोहक के
आगे क्यों गयीं।
उसके अपने
घरवालें ही उसे
नहीं समझ पा
रहे थे। अपराजिता
का मन किया
कि वह मोहक
का मुँह नोच
ले........बहुत गुस्सा
आया था। मोहक
को खुश्बु पसंद
नहीं आयी तो
क्या व उसकी
बहन को क्यों
शादी के लिए
कहेगा।
अपराजिता की अपनी
दुनिया, अपने सपने
थे। अपने पैरों
पर खड़े होना,
खुद को साबित
करना था। बहुत
कुछ करना था।
इस घटना के
बाद से एक
तनाव सा रहने
लगा। मौसी ने
घर आना बंद
कर दिया और
पापा मम्मी भी
बात-बात पर
उपदेश दे देते।
जिंदगी यूं ही
गुजरने लगी। लोग
इस बात को
भूलने लगे। बीतते
समय के साथ
खुश्बु की शादी
भी एक मल्टी
नेशनल कम्पनी के
मैनेजर के साथ
हो गयी। इस
घटना को वक्त
के साथ सब
भुल गये।
लेकिन अपराजिता न
भूल पायी। उसे
अपने घरवालों से
यह उम्मीद नहीं
थी। उसकी गलती
न होते हुए
भी सबने उसे
डॉटा था। जिन
घरवालों को वह
अपनी दुनिया समझती
थी......मौसी, मम्मी, पापा,
छोटा भाई सब
अपराजिता को समझाते......यहाँ तक
की खुश्बु ने
भी उससे कुछ
समय के लिए
बोलना बन्द कर
दिया।
अपराजिता के लिए
यह एक सदमें
से कम नहीं
था कि एक
अजनबी के एक
अजीबों गरीब प्रस्ताव
के कारण बिना
सोचे समझे सबने
उसे गुनहगार घोषित
कर दिया। जब
देखो तब उसके
पापा डॉटते-‘‘कोई
सपनों का राजकुमार
नहीं आयेगा, सफेद
घोड़े पर सवार
होकर......नौकरी करो....बाहर
की दुनिया देखो
घर में बैठकर
थाली भर खाना
खाने से कुछ
नहीं होगा।‘‘ अपराजिता
ने घर की
बातों को सकारात्मक
लेते हुए अपराजिता
ने खूब मन
लगाकर पढ़ाई की।
कालेज की पत्रिका
लिखना शुरू किया।
अपराजिता की कलम
में जादू था।
कुछ कर गुजरने
की ख्वाहिश धीरे-धीरे सब
उसके लिखे लेखों
और कहानियों को
लोगों की प्रशंसा
होने लगी। अब
तक उसे अपनी
छुपी हुई प्रतिभा
का ज्ञान हो
चुका था। उसने
अपनी इस कला
का उपयोग समाज
की बुराइयों को
दूर करने में
किया। धीरे-धीरे
उसके लेखों कहानियों
को प्रतिष्ठा मिलने
लगी एक उसकी
एक दहेज पर
लिखी कहानी को
पुरस्कार मिला। अपराजिता बहुत
खुश हो गयी।
घर आकर
उसने सबको बताया
तो मम्मी ने
कहा-‘‘अच्छा है
लेकिन कथनी और
करनी में बहुत
फर्क होता है।
जब तुम ससुराल
जागी तो खूब
सारा दहेज लेकर
जाओगी। कोई मुफ्त
में नहीं जाओगी।
यह सब शौक
तक तो ठीक
है लेकिन सपने
और हकीकत में
बहुत अंतर होता
है। कथनी करनी
में बहुत अंतर
है। यह तो
आदर्शवादी बातें सिर्फ किताबों
में अच्छी लगती
है। अपराजिता धीरे-धीरे भावात्मक
रूप से टूटने
लगी। उम्र के
जिस मोड़ पर
उसे माँ-बाप,
भाई-परिवार की
जरूरत थी, उस
समय उसका परिवार
उसे प्यार उसे
प्यार के बदले
ताने दे रहा
था इन सब
परिस्थितियों के बीच
सिर्फ एक चीज
थी जो उसे
सुख देते....सुकुन
देते....सहारा देते वह
थे उसके सपने।
वह अपने परिवार
केलिए समाज के
लिए कुछ करना
चाहती थी। उसकी
पढ़ाई पूरी होगयी।
अब उसने नौकरी
खोजना शुरू की।
वह समाज
में अपना मुकाम
हासिल करने का...। धीरे-धीरे वह
अपने ही घर
में परायापन व
अकेलापन महसूस करने लगी।
उसका भाई
उससे छोटा था
लेकिन घर के
किसी भी अहम
मुद्दे पर उसके
भाई की राय
ली जाती, उसकी
नहीं।
उसे कदम-कदम पर
यह एहसास होने
लगा कि वह
एक लड़की है।
इस आधुनिक समाज
में विकास के
नये कीर्तिमान स्थापित
किये जा रहे
थे, परंतु महिलाओं
की वही स्थिति
थी।
अपराजिता की कोशिशे
रंग लायी और
उसे मुम्बई की
अच्छी कम्पनी में
जनसम्पर्क अधिकारी की नौकरी
मिल गयी। नये
शहर में नयी
जिदंगी की शुरूआत
नये सपनों की
शुरूआत थी। जिदंगी
के इस नये
सफर में अचानक
उसकी मुलाकात मोहक
से हो गयी।
वह अपनी कम्पनी
के प्रोजेक्ट के
सिलसिले में उसकी
मुलाकात मोहक से
हुयी।
सालों के बाद
अचानक मोहक से
यूँ मुलाकात होगी
अपराजिता ने कभी
न सोचा था।
मोहक भी एक
बार में ही
उसे पहचान गया।
अपराजिता खुद को
अहज महसूस कर
रही थी। जिस
इंसान का चेहरा
वह पूरी जिंदगी
नहीं देखना चाहती
थी वह उसके
सामने था। इस
चेहरे ने अपराजिता
को अपने घर
में ही पराया
कर दिया था।
वह नौकरी तो
नहीं छोड़ सकती
थी।
अपने प्रोजेक्ट
के सिलसिले में
उसे मोहक से
मिलना पड़ता हर
रोज हर पल
वह खुद से
युद्ध लड़ती। बस
यह सिर्फ काम
की ही बात
करती। वह प्रोजेक्ट
का अंतिम दिन
था। उसे मोहक
से आखिरी बार
मिलना था।
आज न
जाने क्यों उसे
कुछ खाली-खाली
लग रहा था।
शायद मोहक के
साथ रहते-रहते
उसे मोहक का
साथ अच्छा लगने
लगा था। मोहक
एक आकर्षक व्यक्तित्व
का स्वामी था।
बहुत कम बोलना,
सबकी मदद करना,
सकारात्मक सोच, अनुशासन
प्रिय और समय
का पाबंद इतने
गुण की अंगुली
पर गिनो तो
कम पड़ जाये।
उस शाम
जब प्रोजेक्ट रिपोर्ट
जमा करके जाने
लगी तो मोहक
धीरे से बोला-‘‘अपराजिता जी हम
आपसे कुछ कहना
चाहते है?‘‘
‘‘जी
कहिए‘‘
‘‘मैं
आज भी आपका
इंतजार कर रहा
हूँ। जिस मोड़
पर मेरी जिन्दगी
ठहरी आज भी
वही पर है।
मैनें आज तक
शादी नहीं की........आपकी शालीनता,
गंभीरता मुझे बहुत
अच्छी लगी। मैने
अपने जीवन साथी
में जो सारी
खुबियां चाही थी
वह सब तुम्हारे
अन्दर है। मेरे
माँ-पिताजी ने
कितनी लड़कियों से
मिलवाया, लेकिन न जाने
वह कौन सी
बात थी कि
मुझे कोई अच्छी
न लगी। ना
जाने मैं क्या
कर रहा था?
क्यों कर रहा
था? तुमसे मिलने
के बाद समझ
आया कि तुम
थी जो मेरे
दिलो-दिमाग में
बस गयी थी।‘‘
‘‘तुम
क्या जानते हो?
कैसा लगता है
एक जब उसे
नुमाइस की तरह
घुमाया जाता है।
अजनबी लोगों द्वारा
उसका आकलन किया
जाता। मोल-भाव
करके.......उसे नकारा
जाता। तुमको जरा
भी एहसास है
कि क्या गुजरती
है लड़कियों पर
तुम पत्थर दिल
हो। तुमने एक
बार भी यह
नहीं सोचा कि
खुश्बु और उस
जैसी लड़कियों
को तुम देखने
जाते और बिना
वजह बिना उनकी
किसी कमी के
उनको तुम अस्वीकार
कर देते। मुझसे
भी प्यार का
दावा करते हो?
लेकिन क्या बीती
मुझपर तुम्हे एहसास
है। मेरे घरवाले
मुझसे नफरत करने
लगे। परायी हो
गयी मै उनके
लिए और तुम
इसे प्यार कहते
हो? नफरत करती
हूँ मैं तुमसे......नफरत करती
हूँ..............मैं तुमसे
नफरत‘‘...........आज बरसों
का आक्रोश गुस्सा
बनकर फूट पड़ा
था। अपराजिता चीख
रही थी। मोहक
ने शान्त स्वर
में उत्तर दिया-‘‘सबको अपनी
जीवनसाथी चुनने का हक
है। मैं मानता
हूँ मैनें बहुत
सी लड़कियों का
अपमान किया। जाने-अनजाने लेकिन मै
क्या करूँ? मैं
जब तुम्हें पसंद
करता तो क्यों
किसी लड़की की
पूरी जिन्दगी खराब
करूँ। मै कभी
नहीं जाता लड़की
देखने लड़कीवाले खुद
अपनी बेटी की
तस्वीर भेजते.......तो कभी
किसी को दुख
नहीं देना चाहता।
इसलिए तुम्हारे परिवारवालों
के इनकार के
बाद मैनें कभी
कुछ नहीं कहा।
मैनें तो वह
शहर भी छोड़
दिया था। यह
तो किस्मत का
खेल था कि
तुमसे इस तरह
से मुलाकात हुयी।
अगर मैं आज
तुमसे अपने दिल
की बात न
कहता तों खुद
को कभी माफ
नहीं कर पाता।
क्या तुम्हें नहीं
लगता कि हमारा
स तरह से
मिलना ईश्वर की
मर्जी की ओर
इशारा करता है‘‘
मोहक
के तर्को के
आगे वह निरूत्तर
हो गयी। बिना
कुछ बोले वह
वहाँ से उठ
कर चली गयी।
उस रात अपराजिता
को नींद नही
आयी। उसने ठण्डे
दिमाग से मोहक
की बातों को
सोचा तो सही
भी लगी कि
किसी दबाव में
आकर शादी करने
से अच्छा तो
इनकार है। कुछ
पल का दर्द
जिन्दगी की खुशी
दे जाता है।
क्योंकि अनचाहे या मजबूरी
के रिश्ते हमेशा
तकलीफ देते है।
आज खुश्बु अपने
पति के साथ
बहुत खुश थ।
इतना तो वह
मोहक के साथ
खुश नहीं रह
पाती।
अगले
दिन मोहक के
अच्छे से गुड
मार्निंग मैसेज के साथ
आंख खुली। बीतते
समय के साथ
मोहक भी उसकी
जरूरत बन गया
मोहक ने उसके
रूप और गुण
को उससे भी
बेहतर समझा। अपराजिता
को उसके लेखन,
उसके व्यक्तित्व हर
पहलू को निखारने
में योगदान दिया।
अपराजिता की खुद
से पहचान करायी।
अपराजिता का आत्मविश्वास
बढ़ गया। उसका
रूप निखर गया।
जिस प्यार जिस
अपनेपन की तलाश
उसे बचपन से
थी। वह सब
मोहक ने बिन
माँगे दे दिया
था।
दोनों
ने पूरा जीवन
साथ बीताने का
फैसला कर लिया।
जिसे दिन अपराजिता
ने यह बात
अपने घर वालों
से कही......उस
दिन उसके घर
में बहुत झगड़ा
हुआ। पापा ने
बिना कुछ समझे
ही मोहक को
अयोग्य घोषित करते हुये
शादी से इनकार
कर दिया। माँ
ने पापा की
बातों का मुक
समर्थन किया। चाचा जी
ने अपराजिता के
इस कदम को
साची-समझी साजिश
मान लिया। पहले
तो अपराजिता ने
घरवालों को समझाने
की कोशिश की।
परंतु वह न
माने। इधर मोहक
के घरवालों ने
अपराजिता को बहु
के रूप में
सहर्ष स्वीकार कर
लिया। उन्हें तो
इस बात की
खुशी थी कि
मोहक ने विवाह
के लिए हाँ
कर दी।
मोहक अपने
मम्मी पापा के
साथ खुद गया
था, अपराजिता का
हाथ उसके पापा
से माँगने। उसने
अपराजिता के पापा
से कहा-‘‘अंकल
जी आप हमें
क्यों पसंद नहीं
करते? क्यों नाराज
रहते है मुझसे?
मैं अपराजिता के
व्यक्तित्व से प्रभावित
हूँ, उसे पसंद
करता.......उससे शादी
करना चाहता हूँ।
अपराजिता व्यक्तित्व मेरे स्वभाव
से मेल खाता
है। मैं मानता
हूँ कि 3 साल
पहले मैं खुश्बु
को अपना जीवन-साथी बनाने
गया था। लेकिन
अंकल वह मेरे
साथ खुश नहीं
रहती और न
मैं उसके साथ
क्योंकि हमारा व्यक्तित्व मेल
नहीं खता। उसका
हँसमुख, भोला और
मासूम स्वभाव.......मेरे
गम्भीर, अनुशासनप्रिय स्वभाव के कारण
उसके शौक दम
तोड़ देते। मैं
भी खिलाफ हूँ
लड़कियों को देखकर
इनकार करने या
जबरदस्ती कमियां निकालने के।
समाज में यह
हक लड़की को
भी है कि
अगर लड़का पसंद
न आये तो
वह मना करे।
कुछ लड़कियां ऐसा
करती भी है
लेकिन यह उनके
घर वालों को
ही पसंद नही
आता। मैनें जबसे
अपराजिता को देखा
तो लगा कि
जो गुण मुझे
अपनी जीवनसाथी में
चाहिए थे वह
सब इसमें है।
आपके इनकार के
बाद मैनें कोई
जबरदस्ती नहीं की
न कोई दूसरी
लड़की देखी। लेकिन
दो चार लड़की
वालो ने अच्छा
घर-वर देखकर
किसी बहाने से
मुझे लड़कियों से
मिलवाया। जब ईश्वर
ने प्रोजेक्ट के
सिलसिले में मुझे
अपराजिता से मिलवाया।
तब मैं ईश्वर
के दिये मौके
को खोना नहीं
चाहता। अब आखिरी
फैसला आपका ही
होगा।‘‘
मोहक की बातों
ने एक बार
अपराजिता के पापा
को भी सोचने
पर मजबूर कर
दिया। धीरे-धीरे
समय बीता और
अपराजिता की मर्जी
को परिवार वालों
ने भी स्वीकार
कर लियया। दोनों
विवाह बन्धन में
बंध गये। अचानक
मोबाइल की घंटी
ने अपराजिता की
श्रृखंला को विराम
दे दिया। फोन
मोहक की माँ
का था वह
बोली-‘‘हेलो बेटा‘‘
‘‘माँ क्या बात
है?‘‘ आप कुछ
परेशान लग रही
है? हाँ बेटा
तेरे पिताजी को
दिल का दौरा
पड़ा है......माँ
अपनी बात पूरी
भी नहीं कर
पाती उससे पहले
ही अपराजिता ने
घबरा कर पूछा-‘‘माँ कब‘‘?
पिताजी कहाँ है?
कैसे है? कब
हुआ यह सब?‘‘
नहीं बेटा चिन्ता
की कोई बात
नहीं है। वह
अब ठीक है,
अभी भी अस्पताल
में हैं। वह
तुमसे और मोहक
से मिलना चाहते
है। बस तुम
जल्दी से भारत
आ जाओ। मोहक
का फोन नहीं
लग रहा है।‘‘
हाँ माँ मैं
आ जॉऊगी। आप
चिन्ता न करो
हम जल्दी से
जल्दी आयेगें।‘‘ अपराजिता
अजीब दुविधा में
फँस गयी। मोहक
का पता नहीं.......क्या करे?
कहाँ जाये? उसने
फिर मोहक को
फोन लगाया। फोन
स्विच ऑफ...........।
अपराजिता को समझ
नहीं आ रहा
था कि क्या
करे? कैसे मोहक
को खोजे। अचानक
दरवाजे की घंटी
बजी। उसने झांककर
देखा मोहक खड़ा
था। उसने दरवाजा
खोला और माहक
के गले लग
गयी। कोई कुछ
बोल पाता उससे
पहले ही उसके
आंसुओ से मोहक
का सीना भीग
गया। मोहक अन्दर
आ गया। उसके
गाल पर दो
चपत लगा कर
बोला-‘‘यह क्या
हाल बना लिया
है पगली‘‘।
पगली हाँ हूँ.......क्यों छोड़ कर
गये थे मुझे......तुम्हें क्या लगता
है कि मैं
खुश रहूँगीं..........तुम्हारे
बिना............जब जी
चाहा अपना लिया...........जब जी
चाहा ठुकरा दिया।‘‘
‘‘सॉरी जान‘‘ मोहक
ने दोनों कान
पकड़कर बोला। ‘‘सॉरी
का क्या मतलब
होता है? मैं
मर गयी होती
तो‘‘
अच्छा इतनी आसानी
से कहाँ पीछा
छोड़ोगी तुम लेखिका
जो ठहरी। अपने
इमोशनल डॉयलॉग से मेरी
जान लोगी।‘‘ तुम्हे
मेरी भावनाएं डॉयलाग
लगती। तुम्हारे लिए
आज मैं जॉब
छोड़ कर आयी........और तुमनें
मुझे छोड़ने में
एक पल की
भी देर न
लगायी। ‘‘सॉरी जान
मैं भी नहीं
जी सकता तुम्हारे
बिना........नहीं जाना
मुझे देश.........तुम
जहाँ मेरे साथ
हो वहीं मेरा
घर होगा। एक
रात की दूरी
ने मुझे बता
दिया कि तुम
मेरे लिए कितनी
महत्वपूर्ण हो क्या
अपने मोहक को
माफ नहीं करोगी।‘‘
मोहक ने अपराजिता
के दोनों हाथ
को पकड़कर कहा।
अपराजिता ने कहा-‘‘नहीं मोहक
अब हम अपने
देश अपने घर
वापस चलेगें। तुम
मिल गये और
अब कुछ नहीं
चाहिए।‘‘
अपराजिता ने माँ
के फोन के
बारे में बताया।
जल्दी ही दोनों
भारत वापस आ
गये। दोनों समझ
गये थे सच्चे
जीवनसाथी एक-दूसरे
की खुशी के
लिए जीते है।
समर्पण और प्यार
के बीच अहं
की कोई जगह
नहीं होती।
सच्चे जीवनसाथी एक-दूसरे की भावनाओें
का आदर करते
है। तमाम झगड़ों
के बाद भी
उनका प्यार कम
नहीं होता।
नाम- डॉ
साधना श्रीवास्तव
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