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दोस्तों आप
ने कभी
कभी ठाकुर अंकल
की चाय
तो जरूर
पी होगी।
....एक दुकान
जो संघर्ष
में सकुन
की जगह
थी। ......जिनसे मैंने
प्रेरणा ली
जो करो
दिल से
मैं और ठाकुर अंकल
ठाकुर अंकल पी0एच0डी0 के तनाव और झंझटों के बीचसकुन का अड्डा थे। उस रोज बस अपने कदम जल्दी-जल्दीआगे बढा़ रहे थे। मन की थकान और तनाव को दूर करने कीजल्दबाजी थी मुझे ............ लग रहा था जल्दी से पटरी आजाये, ओर पटरी पार करते ही मैं उस जगह पहुंच जाऊ जहांमेरा सकुन और हौसला देने वाली गर्म चाय की प्याली मिलती है।
जिन्दगी का सबसे मुश्किल दौर पी0एच0डी0 पूरी करने का सिरदर्द और जमाने के सितम में ठाकुर अंकल की दुकान औरउनके हाथों की बनी मस्त गर्म चाय नयी उमंग और जोश भरदेती थी।
ठाकुर अंकल का असली नाम क्या है?
यह तोमुझे नहीं पता है और शायद पूरे इलाके में ही किसी को पताहो क्योंकि सब उन्हें ठाकुर अंकल के नाम से ही जानते हंै।
मोटे-तगडे़ ठाकुर अंकल लम्बे कद-काठी के बलिष्ठ व्यक्तिव केस्वामी है। लेकिन चेहरे में अजीब सा रौब होने के बावजूदहंसी हमेशा विद्यमान रहती है। कंधे पर लटकता मटमैलामगौछा और कोयले के चूल्हे पर कहाड़ी पर गर्म
गर्म तलते समोसे और धुआं छोड़ती केतली मुझे बुला रही थी।
मैं ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि आज तो ठाकुरअंकल की दुकान एक बार फिर खुल गयी हो।
हमारी यूनीवर्सीटी के पास ही थी ठाकुर अंकल की दुकान मेरे लिएवीराने का सहारा और मेरे तरह ही अन्य कई छात्र-छात्राओंके लिए सुरक्षा का आश्वासन थी। उनकी दुकान पर आमचाय नाश्तों की दुकान की तरह लड़कों का वर्चस्व नहीं रहता,उनकी दुकान में कोई भी लड़की अकेले भी बैठ सकती थी।वजह वहां ज्यादातर स्टुडेंट पी0एच0डी0 के आते थे।
भिन्न-भिन्न विभागों के भावी प्रोफेसरों का जमावाड़ा और ठाकुरअंकल का व्यक्तिव उस दुकान के वातावरण को सुरक्षितऔर शैक्षणिक बनाता था।
संक्षेप में कहे तो मुझे सुरक्षा का आश्वासन देती वह दुकानमेरे लिए सकुन पाने और दर्द को मिटाने का अड्डा बन चुकीथी, वहां जाकर जिन्दगी के नये रास्ते मिलने लगते थे।पिछले कुछ दिन से उनकी दुकान बंद थी, कोई कहता वह बीमार है तो कोई कहता बडे़ मस्तमौला और बेफिकरे है कुछमाह दुकान चलात है तो कुछ दिन बंद कर देते। जनाब वजहजो भी हो लेकिन मेरा और मेरे साथ के रहने वाली रूम मेटनेहा, रिनी सभी का बुरा हाल था। यह इलाका था कि कुछ ऐसा ना कोई आस-पास घूमने की जगह, ना अच्छे खाने-पीनेकी दुकान और कोई आॅटो-रिक्शा भी नहीं बस फायदा एकही था कि यूनीवर्सीटी बहुत अच्छी पढ़ायी होती थी ।
उससे भी अच्छी बात नये आये वी0सी0 सोबती सर ने यूनीवर्सीटी का कायापलट भी कर दिया था।
लेकिन पैदल चलना तो हम छात्रों की मजबूरी थी, बहुत दूरपटरी पार कर आॅटो मिलता और वही पास में थी ठाकुरअंकल की दुकान..............।
दिसम्बर की कड़ाके की ठंड में उनकी दुकान की अहमियतऔर भी अनेक कारणों से थी, उनके यहां सिर्फ गर्म समोसे?नमकपाडे़ ही नहीं मीठी-मीठी करारी कड़ारी जलेबी भी मिलती और पढ़ने को फ्री का न्यूज पेपर और सबसे काम कीबात अलग-अलग विभागों के पी0एच0डी0 स्टुडेंट का वहांपर संगम होना था,
जिस कारण शिक्षा, ज्ञान और मनोरंजन की त्रिवेणी उनकी दुकान पर धाराप्रवाह प्रवाहित होती थी,बगल की फोटो स्टेट की दुकान जिस पर एक पति-पत्नि औरउनका प्यारा बेटा बैठता था जिसे कोई छात्र दीदी बोलता तोकोई भाभी उनकी दुकान पर मोटी-मोटी विदेशी-देशी किताबोंके फोटो स्टेट, प्रिंट-आउट, तो बेरोजगार युवक-युवतियों केेलिए अपने मार्कशीट और अनुभव पत्रों को फोटो-स्टेट करानेके बीच ठाकुर अंकल की दुकान ही हम बेचारे पी0एच0डी0स्टुडेंट की उदास जिन्दगी में पंचायत परपंच का अड्डा होनेके साथ उम्मीद और सहारा थी।
जिस कारण शिक्षा, ज्ञान और मनोरंजन की त्रिवेणी उनकी दुकान पर धाराप्रवाह प्रवाहित होती थी,बगल की फोटो स्टेट की दुकान जिस पर एक पति-पत्नि औरउनका प्यारा बेटा बैठता था जिसे कोई छात्र दीदी बोलता तोकोई भाभी उनकी दुकान पर मोटी-मोटी विदेशी-देशी किताबोंके फोटो स्टेट, प्रिंट-आउट, तो बेरोजगार युवक-युवतियों केेलिए अपने मार्कशीट और अनुभव पत्रों को फोटो-स्टेट करानेके बीच ठाकुर अंकल की दुकान ही हम बेचारे पी0एच0डी0स्टुडेंट की उदास जिन्दगी में पंचायत परपंच का अड्डा होनेके साथ उम्मीद और सहारा थी।
जहां की बेंच पर बैठकर हम तीनों लड़कियों को भी एहसासहोता कि हमें भी हक है लड़कों की मस्ती और सुरक्षा के साथगर्म चाय की प्याली का।
जहां बेंच पर अखबार पढ़करदुनिया की खबरें पढ़ते और एहसास होता कि हम लड़कियांभी स्वतंत्र है। यह सब सिर्फ ठाकुर अंकल के कारण थाइससे पहले तो तीनों यह सोच भी नही सकते थे कि कोईलड़की चायकी दुकान या रेस्टोरेंट अकेले जाये।
शुरू-शुरू मेंयह साहस फोटो-स्टेट वाली दीदी के कारण हुआ, लेकिनसमय के साथ ठाकुर की दुकान की जगह हमारी जिन्दगी मेंअहम हो गयी। रोज-रोज तो नहीं लेकिन जब पाॅकेट मनीआती या कोई खुशी सेलीबे्रट करनी होती, कोई दुख, डाॅटभुलानी होती तो ठाकुर अंकल की दुकान हमारा पार्टी-हाॅलबनती थी।
पहली बार मुझे याद है कि ठाकुर अंकल कैसे हमारी सुरक्षाके साथ-साथ अपने स्वाभिमान का ख्याल भी रखते थे, उसदिन सुबह-सुबह एक सूट वाले बाबू साहब आये। ठाकुरअंकल ने उन्हें चाय दी।
बाबू साहब भड़क गये- ए ठाकुर यहक्या ठंडी चाय है केतली में गर्म करके दी क्या हम पैसे नहींदेते जा दूसरी चाय ला कर दे ? .........
ठाकुर अंकल ने गुस्से में उन्हें देखा, चाय कागिलास उठाया चाय फेककर गिलास साइड में रख दियाफिर बाबू साहब से उनके ही जितनी तेज आवाज में कहा - ’’ए बाबू सूनो दुबारा मत कहना, हम भईया सुनते, अंकलसुनते ढंग से बात करना नही आता है तो फिर कभी मतआना मेरी दुकान पर ....................... और उसे दूसरी चायभी दी।’’
सूट वाले बाबू लज्जित थे।
ठाकुर अंकल लड़कों को अपनीदुकान पर गुटबाजी और तेज आवाज में बात नहीं करने देतेउन्हें प्यार से समझाते ’’बेटा तुम्हे जो करना हो दुकान केबाहर जाकर करो हमारी दुकान पर कोई गलत हरकत नहीं,हमारा धंधा बंद मत करवाना। किससे कैसी बात करनी हैवह जानते है। उन्हीं से मैंने सीखा विचारोें में बहुत ताकतहोती है।
हम जिन चीजों के बारे सीखते, सोचते है, वैसे ही बनते है।आकर्षण का नियम है कि अच्छा सोचो, अच्छा होगा।
अच्छेविचार रखो तो अच्छा होगा, हम जैसे विचार रखेंगे कुछसमय बाद वैसे ही बन जायेंगे। आत्मविश्वास और आत्मसम्मान क्या होता है ?
उनके बारे में सोचते-सोचते कब उनकी दुकान तक पहंुच गयी, इसका एहसास ना रहा, देखा दुकान आज भी बंद थी।बहुत निराशा हुयी। हम रोज इन्तजार करते आज वह दुकानखुलेगी देखते-देखते हम घर चले गये।
4-5 दिन बाद ही हम नव वर्ष मनाने घर चले गये।
एक रोज हमारे मोबाइल घंटी बजी, फोन हमारी रूममेट नेहाका था - दीदी एक खुश खबरी ? हमने पूछा - ’’क्या’’
’’ठाकुर अंकल की दुकान वापस खुल गयी है’’हम सब खुश थे। हम वापस आ गये। पढ़ाई और प्रोग्रामरिपोर्ट जमा करनी थी। बहुत दिनों तक चाहकर भी हम ठाकुरअंकल की दुकान न जा पाये। हमारी रूममेट पर भी रोजटेस्ट, एसान्इमेंट का बोझ ...............
हम जब महीने के राशन लेने बाजार निकले कुछ किताबे भीखरीदनी थी। जनवरी की सर्दी में रात के 8 बजे गये।सुनसान और वीरान इलाके में जब डरते-डरते आॅटो में उतरेतो जनवरी की ठंड में देखा उनके दुकान की लाइट जल रही हैजो हमें एक सुखद आस दे गयी।
हम और रिनी थे दोनों ने एक-दूसरे की आंखों में देखा,मुस्कुराये और कदम खुद ब खुद दुकान की ओर बढ़ गये।रात की ठंडी में चाय पीना मजा ही अलग होता है। देखाउनकी दुकान पर और भी लड़के-लड़कियां बैठे थे।
हम दोनों हंस-हंस कर चाय की चुस्कियों का आनन्द ले रहे थे।
अचानक नजर कढ़ाई में छनते नामकपाडे पर पड़ी फिरखिसयानी हंसी के साथ सोचा हमे लोग कितने खब्बू समझेगे।
लेकिन आर्डर दे दिया।
नमकपारा तो हम खा हीरहे थे कि पहले चाय का असर खत्म हो गया था कि दूसरीचाय का आर्डर दे दिया।
धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। हम सबका ध्यान पढ़ाई की ओर चला गया। दुकान जाना कम हो गया। हमरात-रात भर पढ़ते तो कभी देर से जागते ............... इनमुश्किल और तनाव भरे दिनों में इतना पता था कि शांति औरधैर्य से हर हालात गुजर जाते है।
एक रात हम देर तक पढ़े सुबह 6 बजे फिर उठना था।हमारा चाय पीने का मन हो रहा था।
आस-पास की किसी भी दुकान में दूध की गाड़ी नहीं आयीथी।
हमने सोचा क्यों ना ठाकुर अंकल की दुकान पर चलाजाये शायद खुली हो नहीं तो मार्निंग वाॅक हो जायेगा।
हम सुबह-सुबह उनकी दुकान पर पहंुचे देखा,वह चाय बना रहे है, और समोसे वाले चूल्हे की राख निकालकर, कोयले डाल रहे थे। हमें उनकी कर्मठता देखकर अच्छालगा कि चाहे रात हो या दिन उनकी दुकान सही समय परखुलती, सर्दी, गर्मी और हमने सीखा कि कैसे अनवरत अपनेकत्र्तव्यों का पालन करना चाहिए, हर काम और व्यक्ति कीउपयोगिता तब ही होती है जब वह लगातार और पूरी निष्ठाके साथ किया जाये।
एक दिन उनकी राजनीतिक परिवक्ता और उनको पास सेजानने का मौका मिला।
चार भाई-बहनों में सबसे बडे़ थे, वहबचपन से यह नहीं बनना चाहते थे, लेकिन गरीबी के कारणज्यादा पढ़ नहीं पाये, तो अपने अनुभव और व्यवहारिकतासे आज पी0एच0डी0 वालों को भी ज्ञान दे देते थे। मेहनतऔर ईमानदारी से पढ़ते देखकर खुशी होती है। उनकी सोचथी कि पी0एच0डी0 स्टुडेंट को गंभीर और परिवक्व सोचका होना चाहिए एक टीचर ही समाज को सुधार सकता है।
इसीलिए हर किसी को उच्च शिक्षा में आगे जाने से पहलेअपना मकसद और लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए। उन्हेंतब बहुत खुशी होती जब कोई कहता कि मेरी पी0एच0डी0पूरी हो गयी, या अच्छी जाॅब लग गयी। उनसे बहुत कुछसीखने को मिलता उस दिन बातों-बातों में उनसे पूछ लियाकि ’’आप दुकान बंद करके कहां गये थे’’ उन्होंने बताया कि’’स्वास्थ्य ठीक नही था और हिन्दू धर्म में अनेक देवी-देवताहै तो कभी-कभी दर्शन को दूर यात्रा पर निकल जाते थे। उन्हेंअपनी माँ की कमी हमेशा महसूस होती थी, उनके साथ वहनहीं थी। तो अपने सकुन, शांति के लिए भगवान पर आस्थारखते थे।
वह कभी फेंककर देने वाले ग्राहकों से पैसे नही लेते, बल्किडांटकर उन्हें सुधार देते। ऐसे ही अनेक घटनाएं यादें जुड़ी है,उनके जीवन की जो हमें जिन्दगी के फलसफे सिखाती है।मेरा तो मन यह कहता कि जिन्दगी यूं ही चलती रहे, मुश्किलोंमे भी हौसला मिलता रहे। पी0एच0डी0 स्टुडेंट ठाकुर अंकलकी दुकान पर अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ाते रहे, प्रोफेसर बननेकी तैयारी करते रहे।
उनकी चाय की दुकान हमेशा लोगों को प्रेरणा देता रहे।
Dr. Sadhana srivastava