Friday, June 19, 2015

सपनों को सच करने का रास्ता बताती हिन्दी भाषी युवक के सफलता की कहानी मंजिले 4

सपनों को सच करने का रास्ता बताती हिन्दी भाषी युवक के सफलता की कहानी   मंजिले  4 

जब वापस गाँव पहुँचा तो पूरे गाँव वाले स्टेशन पर लेने के लिए आये। उसके बूढ़े पिता की आंखों में अजीब चमक थी। माँ और बहनों ने पकवानों के ढेर लगा दिये। सारी चीजें दीपक की पसंद की थी।
                   ’’बेटा और खा लगता है कि तेरी खुराक एक ही दिन में कम हो गयी’’ दीपक की माँ निर्मला देवी बोली हाँ माँ भईया की थाली तो खाली है’’ बहन बोली। अचानक 12 साल का गणेश दौड़ता आया।
’’चाचा दीपक भैया को मास्टर साहब पाठशाला बुलाये है।’’
’’क्यांे क्या काम है रे छोरे’’ निर्मला देवी बोली।
’’वह तो गुरू जी जाने पर दोपहर को बुलाये हैं’’ कह कर गणेश तेजी से भाग गया।
                   दोपहर दीपक जब पाठशाला पहुँचा तो देखता ही रह गया। किसी समारोह जैसा पूरा स्कूल सजा था। सारे बच्चे, गाँव वाले, मास्टर साहब, और खुद सरपंच जी वहाँ मौजूद थे। पीछे एक चार्ट पेपर पर बड़ा-बड़ा लिखा था। दीपक को जिला टाॅप करने की बधाई।  
                   दीपक को समझते देर लगी यह उसी का सम्मान समारोह है। मास्टर साहब ने उसकी पीठ ठोकी और सबने दीपक की बहुत तारीफ की। लेकिन इस सम्मान से दीपक को खुशी नहीं मिल रही थी, अंदर एक अजीब आत्मग्लानि थी।
                   कालेज के लड़के-लड़कियों की तुलना में दीपक अपनी काबिलियत का आंकलन खुद ही कर रहा था। दीपक ने ज्यादा कुछ कहा बस ’’गुरू जी के पैर छूकर बोला ’’गुरूजी मैं आज जो कुछ भी हूँ वह सब मेरे परिवार के प्यार और मेहनत का फल है।
                   इस गाँव में साक्षरता अभियान की जो शुरूआत आपने की है वह सराहनीय है। मैं इस गाँव के हर बच्चे में यही कहना चाहूँगा कि वह मन लगाकर मेहनत से पढ़े और आगे बढ़े। लेकिन यह भी ध्यान रखे कि अंग्रेजी बहुत जरूरी है। आज मैं सब कुछ जानते हुये भी कालेज के इंटरव्यू में सवालों के जवाब नहीं दे पाया। उस एक पल मुझे बहुत शर्म महसूस हुयी। लगा कि धरती फट जाये और मैं समा जाऊँ। वह तो एक देवता स्वरूप इंसान प्रो0 शर्मा जी ने मेरा पक्ष लिया। उस एक पल मुझे अपनी उपलब्धि अधूरी लगी। लगा कि काश मैंने जितनी मेहनत पढ़ाई में की, उतनी मेहनत अंग्रेजी सीखने में की होती। तो आज मैं आज के बच्चों से सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि जितना जरूरी पढ़ना है उतना ही जरूरी अंग्रेजी का ज्ञान और व्यक्तित्व का विकास है। बड़ों को यह आश्वासन देता हूँ कि कृषि विज्ञान से पढ़ाई के उपरांत मैं गाँव में खेती की उन्नत तकनीक, खाद्य खेती सिंचाई में तरीके पता करके गाँव के विकास में अपनी शिक्षा का उपयोग करूँगा। इस गाँव में लहराती फसलें होगी। हर वह सुख-सुविधा होगी जो शहर में होती है-----’’
                   दीपक एक साँस में सब कह गया। पूरा गाँव उसे एकटक देख रहा था। उसके बोलने पर बहुत ताली बजी
                   दीपक अपने हर अनुभव हर भावना को सच-सच गाँव वालों से शेयर किया। उसके बूढ़े पिता के चेहरे पर एक अनोखी चमक थी। घर वापस आकर उसकी माँ से बोले ’’सुनती हो निर्मला तुम्हें भी आज पाठशाला आना चाहिए था। हमारी मेहनत सफल रही। दीपक की तारीफ पूरा गाँव कर रहा था। नाम रोशन कर दिया। जन्म सफल हो गया।’’
                   माँ बहनें भी दीपक की तारीफ सुनकर प्रसन्न हो गयी। तीन-चार दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। इस बार जब दीपक शहर पहुँचा तो सपनों के साथ उसकी आँखों में अनचाहा डर था। कभी-कभी उसे यह सोचकर घबड़ाहट होती कि कही वह इस नये वातावरण रंग-ढंग में अपने को नहीं ढाल पाया तो क्या होगा ?
                   अगर इस संघर्ष में उसकी हार हुयी तो क्या होगा ? कैसे कर पायेगा सामना अपने माता-पिता का ?
                   ऐसे हजारों सवाल उसके मन में थे। उसे हास्टल के फस्र्ट फ्लोर पर सबसे आखिरी रूम मिला। उसका रूम मेट आकाश काफी स्मार्ट था। वह गाँव का नहीं शहरी माहौल में पला-बढ़ा स्वभाव का लड़का था।
                   जितना दीपक सरल, भोला, सच्चा इंसान था। उतना ही आकाश चालक और झूठा था। उसका ध्यान पढ़ना छोड़कर बाकी सब बातों में रहता था।
                   दीपक उसके साथ में खुद को बहुत असहज महसूस करता था। वही दूसरी तरफ आकाश के अपने और दोस्त थे।      
                   दीपक रविवार की शाम को ही अपने रूम में गया। आकाश पहले से ही रूम में था। दीपक ने अपनी तरफ का रूम साफ किया। अलमारी में माँ के हाथ बने लड्डु नमकीन रखे। आकाश अपने कान में इंयरफोन लगाये गाने सुनने में मस्त रहा। दीपक पूरे रूम की सफाई के बाद फ्रेश होकर आया तब आकाश बोला - ’’हैलो मैं आकाश तुम्हारा क्या नाम है, बड़े शांत हो? दीपक ने अपना परिचय दिया। खाने के बाद जैसे ही वह सोने जाने लगे। दरवाजे पर दस्तक हुयी।
                   दीपक ने आकाश की ओर देखकर पूछा - ’’इतनी रात कौन हो सकता है ?’’
’’होगे बड़े भईया आये होगे स्वागत -सत्कार को’’ आकाश बोला ’’मतलब’’
’’मतलब खोल दरवाजा समझ जायेगा’’
                   दीपक ने दरवाजा खोला देखा वही सीनियर थे। जो उस रोज कैंटीन में दीपक की रैगिंग लेने आये थे।
’’चलो रूम 0 1 में जाना’’
’’क्यों’’ दीपक ने पूछा
’’यार तुम सवाल बहुत पूछते हो उस दिन तो किस्मत अच्छी थी जे बच निकले। आज कौन बचायेगा। अब ज्यादा सवाल नहीं पैर छू और बड़ों की आज्ञा माना करो।’’
                   आकाश पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। दीपक की कुछ समझ नहीं आया। वह हक्का-बक्का चुपचाप खड़ा सब सुन रहा था। मौके की नजाकत को समझता हुआ वह बीच में बोला - ’’आप चलो सर, हम अभी इसको लेकर आते हैं।
                   सीनियर के झुंड के जाते ही अकाश दीपक की ओर मुड़कर बोला - ’’यार दीपक इन सीनियर से बहस मत किया करो। यह यहाँ की ही नहीं हर कालेज की परंपरा होती है कि पुराने और सीनियर स्टुडेंट नये स्टुडेंट्स से जान-पहचान और मेल-जोल के नाम पर रैगिंग करते है। यह सब ज्यादा नहीं शुरूआती दौर की बात होती है फिर एक बहुत बड़ी पार्टी होती है। जिसे सब फ्रेशर पार्टी कहते है। उसके बाद जिंदगी में सकुन लेकिन अगर एक बार यह सीनियर नाराज हो गये तो बहुत बुरा होता है। इस कालेज में रहना मुश्किल हो जायेगा। भलाई इसी मेें है कि वह जैसे बोले वैसा करते जाओ।’’ दीपक बहुत थका था लेकिन उसे आकाश की बातों में सच्चाई लगी।
                   दोनों सीधे रूम 0 1 में पहुँचे। वहाँ उनकी तरह सभी नये लड़के थे। पूरे एक माह तक सीनियर अपनी मनमानी करते रहे। बेचारा दीपक पूरा दिन क्लास में पढ़ता फिर रात को रैंगिंग झेलता। पूरी पढ़ाई अंग्रेजी में थी। अतः दीपक को अन्य विद्यार्थियों की तुलना में दुगुनी तिगुनी मेहनत करनी पड़ती।
                   दीपक को कुछ समझ नहीं आता क्या करे ? कभी रातों को अकेला होने पर रोता। कभी मन करता गाँव वापस चला जाये। फिर सोचता किस मुँह से वह वापस जाये। क्या होगा उसके सपनों का ? --- क्या होगा उसके माँ बाप ? कैसे करेगा वह बहनों की शादी ?
                   तरह-तरह के सवालों से दिन-रात घिरा रहने लगा। यथार्थ के धरातल पर उसके सपनंे चकनाचूर होने लगे। यदा-कदा उसकी मुकालात सोनालिका शर्मा से हो जाती। आकाश तो शहरी माहौल में पला-बढ़ा था। उसके लिए तो पढ़ाई कठिन थी और बहुत मयाने रखती। दीपक बेचारा हर जगह सच, ईमानदारी में फँस जाता। उधर आकाश कभी झूठ तो कभी बहाने या कभी सीनियरों को पटाकर कभी किसी दोस्त को फुसलाकर अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट समय से पहले ही जमा कर देता।
                   प्रथम मासिक रिपोर्ट टेस्ट में दीपक के बहुत कम नम्बर आये। उस दिन दीपक बहुत रोया। उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि वह क्या करें। आकाश हर रात की तरह रूम से गायब था। शायद चैकीदार को फुसलाकर लेट नाईट मुवी देखने गया होगा या फिर छत पर अपनी गर्लफ्रेन्ड से घंटो फोन पर बात कर रहा होगा।
                   अचानक दीपक के दरवाजे पर दस्तक हुयी। कुछ सीनियर बाहर थे। दीपक ने अपने आँसू पोछे दरवाजा खोला। सीनियर बोला - ’’परसों प्रोग्राम हैं तुम सब समय से जाना।’’
                   दूसरे सीनियर ने 15 चार्ट पकड़ाकर बोला - ’’कल सुबह तक यह सब बनकर मिल जानी चाहिए। इसे पार्टी में लगानी है।’’ दीपक ने घबड़ाकर कहा - ’’इतनी सारी चार्ट एक रात में कैसे बन पायेगी’’
’’कैसे बन पायेगी यह तुम्हारा सिरदर्द पर हमें तो समय पर काम चाहिये। वह भी टाॅप क्लास का।’’ सीनियर उसे धमका कर चले गये।
                   दीपक उस चार्ट के बंडल को हाथ में लेकर धप्प से अपने बेड पर बैठ गया। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या करें ? कैसे इन हालातों का सामना करें ? एक टाॅपर का हाल ऐसा होगा उसने तो सोचा भी नहीं था। ऐसे में दीपक के हाथ-पैर ढीले पड़ गये। उसकी खुली आँखों के आगे अंधेरा छा गया।
                   रात 2 बजे गुनगुनाता हुआ आकाश रूम में दाखिल हुआ। पहली बार उसे दीपक के हाल पर तरस आया। कहते है कि अगर आप जानवर के साथ भी रहते है, तो उससे भी प्यार हो जाता है। फिर दीपक तो एक नेकदिल लड़का था।
                   आकाश ने पूछा - ’’क्या हुआ यार आज तु बड़ा अपसेट दिख रहा, मूड खराब है क्या ? पहली बार दिल का गुबार आंसुओं में आकाश के आगे फूट पड़ा। आकाश ने चुप कराते हुये दीपक को गले लगा लिया। दीपक लगातार फूट-फूट कर रोये जा रहा था - ’’आकाश मैं हार गया, थक गया हूँ -- टूट गया हूँ। समझ नहीं आता क्या करूं -- अंग्रेजी आती, इन सीनियरों, और हालातों का सामना कर पा रहा। घर लौट नहीं सकता क्या करूँ - .......लगता कही से जहर मिल जाये तो खा लूँ। किस्सा ही खत्म हो जाय। हर इच्छा -- हर चाहत खत्म हो गयी हैं।’’

आगे की कहानी आप जानना चाहते है तो मेरा ब्लॉग देखते रहे कथा काल्पनिक है.... मौलिक है किसी से जुड़ाव संयोग मात्र है   
 साधना श्रीवास्तव 

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