Friday, June 12, 2015

सपनों को सच करने का रास्ता बताती हिन्दी भाषी युवक के सफलता की कहानी मंजिले 3

सपनों को सच करने का रास्ता बताती हिन्दी भाषी युवक के सफलता की कहानी   मंजिले  3 


                   चयन के बाद भी पैनल के विशेषज्ञ संतुष्ट नहीं थे। उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं था कि ग्रामीण माहौल में पला-बढ़ा दीपक शहर के वातावरण से समावेश कर पायेगा। दीपक को भी अनजाना डर लग रहा था लेकिन वह इस बात से ही खुश था कि एडमीशन हो गया।
                   दीपक उस हाॅल से बाहर गया। फीस काउंटर पर जाकर फीस जमा की और बाकी के जरूरी दस्तावेज जमा किये। आज दीपक की जिन्दगी का सर्वोत्तम दिन था। उसके मनचाहे विषय में शहर के सबसे बड़े कालेज में दाखिला मिलना उसके किसी उपलब्धि से कम नहीं था। वह रास्ते की थकान पैर का दर्द भूल गया। अब उसके आगे शहरी माहौल अंगे्रजी के वर्चस्व में मुकाबले की नयी चुनौती थी। 
                   एडमीशन के बाद दीपक अपनी भूख मिटाने को कैंटीन की ओर बढ़ा। अचानक उसे लगा कि सब उसे बहुत अजीब नजरों से देख रहे है। वह सकपका गया एक बार ठिठक कर रूक गया। खुद को उपर से नीचे तक देखा, फिर आगे बढ़ गया। उस काॅलेज की कैंटीन किसी बड़े रेस्टोरेन्ट से कम थी। हर ओर रौनक लड़के-लड़कियों से भरी उस वातानुकूलित कैंटीन में दीपक ने एक डोसे का कूपन काटा। अभी दीपक बैठने ही जा रहा था कि अचानक आठ-दस लड़के-लड़कियों का झुंड वहाँ गया। उसमें से एक लड़के ने दीपक की कुर्सी पीछे खींच ली। वह गिर पड़ा..............पूरी कैंटीन एक ठहाका लगा कर हँसने लगीं।
’’क्यों बे मैनर नहीं हैं अपने सीनियर के आगे बैठते शर्म नहीं आती.........’’एक लड़का बोला।
दूसरा बोला - ’’अरे भाई इतनी हिम्मत तो हमारी कभी नहीं थी।’’
’’मैं कुछ समझा नहीं ’’दीपक घबड़ाकर बोला।’’
’’अरे यह तो बड़ा मासूम है ...................कुछ समझा नहीं इसे तो पता नही’’ एक लड़की ने बड़े अंदाज से कहा।
’’अरे नहीं समझा तो हम समझा देते हैं।’’ एक सीनियर बोला
’’क्यों बे लल्लू तुझे किसी ने बताया नहीं कि नये-नवेले स्टुडेन्ट्स के लिए यह जगह नहीं’’
’’और नहीं तो क्या यह यहाँ खायेगा --- तो हम कहाँ जायेंगे’’
’’चल उठ और जा’’
’’अरे नहीं रूक...................रूक......................’’
                   अब तक दीपक को घेरकर सारे लोग खड़े हो गये थे। बेचारा दीपक हक्का-बक्का सब देख रहा था उसे कुछ समझ नहीं आया। अचानक कैंटीन का वेटर चिल्लाया ’’प्रो0 शर्मा रहे’’ देखते ही देखते कैंटीन का परिदृश्य बदल गया। सारे लड़के-लड़कियां वापस अपनी जगह पर बैठ गये। मिनटों में माहौल एकदम शांत।
                   दीपक ने देखा तो देखते ही पहचान गया - यह वही विशेषज्ञ थे जिन्होंने दीपक के अंग्रेजी आने के बाद भी पैनल में दीपक की सिफारिश की थी। दीपक उनके पैर छूकर बोला - ’’चरणस्पर्श सर’’
’’खुश रहो - ’’बैठो’’ प्रो0 शर्मा ने कुर्सी पर बैठते हुये बोला तो दीपक डर गया।
’’अरे-अरे डरो नहीं बैठो’’
’’जी सर’’ वह धीरे से बैठ गया।
’’देखो बेटा दीपक घबड़ाओं नहीं यहाँ का माहौल नया है। अलग हैं, लेकिन तुम मेहनती हो.................होनहार हो मुझे पूरी आशा है कि तुम मेरी उम्मीदों पर खड़ा उतरोगे। जानते हो आज से चालीस साल पहले मैं भी तुम्हारी तरह ही गाँव से यहाँ आया था। बहुत संघर्ष किया तब यहाँ तक पहुँच पाया हूँ .................मैंने तुम्हारे अन्दर कुछ करने की लगन देखी हैं ......................मैं जानता हूँ बहुत कठिन है लेकिन तुम कर लोगे। अच्छा बताओ तुमने कुछ खाया।’’ शर्मा जी के विश्वास आश्वासन से दीपक को थोड़ी तसल्ली हुयी उसने ना में सिर हिला दिया। प्रो0 शर्मा ने डोसा और चाय मँगवायी। जाते वक्त वह दीपक से बोले - ’’आज बुधवार हैं, क्लास सोमवार से शुरू होगी। तब तक तुम चाहो तो गाँव वापस चले जाओ और अपना बाकी का सामान ले आओ। एक बार पढ़ाई शुरू हो गयी तो फिर काफी दिनों बाद जा पाओगे। यहाँ अटेन्डेन्स बहुत महत्वपूर्ण है।’’ दीपक को बात समझ जाती है वह हाँ में सिर हिला देता हैं।
                   अचानक प्रो0 शर्मा के मोबाइल की रिंग बज उठती है और वह तेज कदमों से कैंटीन से बाहर चले जाते है। प्रो0 शर्मा के जाते ही सीनियर लड़के-लड़कियों के झुंड ने दीपक को फिर घेर लिया। सब आपस में बात करने लगे।
’’अरे यार यह तो बड़ा सयाना निकला।’’
’’हाँ यार हम तो डर गये यह तो शर्मा जी का प्यारा है।’’
’’इसको कुछ मत कहना’’
फिर आपस में सब लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे को देखकर हँसने लगे।
’’क्या तुझे लगता है कि आज शर्मा ने बचा लिया तो रोज बचेगा’’ एक बोला।
तभी एक लड़की बोली ’’सो साॅरी मुन्ना ऐसा तो नहीं हो सकता। जो यहाँ आता है उसे हम सब की सेवा सत्कार तो करनी होगी’’
दूसरी बोली - ’’चल अपना परिचय दे -- पूरा घर-खानदान का पता दे। वह भी सीधे-धीरे नहीं हर वाक्य के आगे बोलना होगा - ’’गधे की पूँछ पकड़ कर’’
सब हँसने लगे ----- बेचारे दीपक को ऐसे भव्य स्वागत की आशा नहीं थी। इससे अच्छी तो गाँव की पाठशाला थी जहाँ बच्चे सुबह से ईश्वर बंदना करते थे। दीपक सहम गया।
’’अबे शुरू हो जा...................या मुर्हुत निकलवायेगा।’’ कहने के साथ ही एक लड़के उसके गाल पर एक थप्पड़ रसीद किया।
दीपक ने रोआॅसे होकर बोलना शुरू किया’’
’’मेरा नाम दीपक है गधे की पूँछ पकड़ कर’’ 
’’मैं अपने गाँव से शहर आया गधे की पूँछ पकड़ कर’’ 
’’मैंने इंटर में पूरा जिला टाॅप किया गधे की पूँछ पकड़ कर’’
’’मैं ट्रेन से शहर आया गधे की पूँछ पकड़ कर’’
’’मैं आटो से कालेज आया गधे की पूँछ पकड़ कर’’
’’यहाँ शर्मा सर ने मेरा खोया आत्मविश्वास लौटाया गधे की पूँछ पकड़ कर’’
-------अरे ------अरे सर का मजाक उड़ाता है। एक दूसरा थप्पड़ ..................
’’अच्छा चल अब फिल्मी गाने पर डांस कर के दिखा’’
’’जी हमें नृत्य नहीं आता’’ दीपक बोला
’’नृत्य नहीं आता तो क्या आता है मुन्ना’’
’’अच्छा चल वह लड़की जो खिड़की से बाहर देख रही हैं और गुलाबी टाप और ब्लू जींस वाली नाम पूछ कर उससे बोल वह डांस कर सकती है।’’
                   दीपक ने आज तक कभी किसी लड़की से बात नहीं की थी। वह कैसे किसी अनजान से डांस करने को कह सकता था ----- वह घबड़ा गया। इधर-उधर देखने लगा। वह लड़की उसकी ही ओर रही थी। शायद उस लड़की ने उन सब की बात सुन ली थी।
’’हमारा नाम सोनालिका है ...........................और हमें नाचना भी आता है और नचवाना भी देखोगे आप सब’’
’’अरे सोना जी आप साॅरी-साॅरी गलती हो गयी।’’ एक लड़का बोला दीपक को आश्चर्य हुआ कि पासा कैसे पलट गया।
’’हमने देखा नहीं था कि आप हो - आप नाराज क्यों होती है।.........हम तो बस लड़के का परिचय जान रहे थे ------ लगभग दूसरा लड़का गिरगिड़ता हुआ बोला। ’’अरे घबड़ाते क्यों हो ? मेरा परिचय भी तो लो तुम सब गोलगप्पा फोड़ के’’ या फिर सीधे प्रिंसिपल के आफिस का पता दूँ गधे की पूँछ पकड़ के।’’ उस झंुड में से एक लड़की आगे का कर बोली’’ अब बस भी करो सोना -- तुम जानती ही हो हम सब यूँ ही मस्ती कर रहे थे।
’’मस्ती --मस्ती के नाम पर तुम किसी भी भोले-भाले इंसान की बेइज्जती नहीं कर सकती मधु’’
                   ’’उफ सोना अब अपना उपदेश फिर मत शुरू करो---’’ ऋचा खींच कर बोली। गु्रप के एक लड़के विक्की ने दीपक में डाटते हुये कहा - ’’चल भाग यहाँ से कोई सिनेमा चल रही है, क्या हैं ?
                   फिर सोनालिका की तरफ मुँह करके बोला - ’’मिस सोनालिका शर्मा जी हम सब हाथ जोड़ कर आपसे क्षमा चाहते हैं कि आपको पहचान नहीं पाये---अब प्लीज अपने पापा प्रो0 शर्मा की तरह उपदेश मत देना।’’
                   सोनालिका प्रो0 शर्मा की बेटी है जो वहाँ से बी0एस00 कर रही थी। उस कालेज की सबसे स्मार्ट, खूबसूरत और इन्टेलीजेन्ट लड़की थी। वह उन सभी को अच्छे से पहचानती थी।
                   सोना फिर बोली - ’’नहीं यार यह रैंगिग बैंकिग मुझे नहीं समझ आती -- अरे कितने होनहार बच्चे घबड़ा जाते-- कोई पढ़ाई छोड़ देता तो अपनी जान तक दे देता।
                   क्या मिलता है किसी का दिल दुखा कर। कितने सपने लेकर यह गाँव के भोले-भाले नौजवान शहर आते हैं --- और रैंगिग का शिकार होकर नाकामयाब हो मायूस होकर लौटते।। ’’
                   बस मेरी मां बस ---विक्की ने हाथ जोड़ने का नाटक करते हुये कहा।
                   ’’चल अब कुछ खाते है बड़ी भूख लगी है’’ यह कहते हुये सब वापस की ओर मुड़ गये।
                   दीपक दूर से उन सब की बातें सुन रहा था। उसे लगा कि शहर में हर तरह के लोग रहते है। कुछ अच्छे तो कुछ बुरे ---
                   दीपक अपनी आँखेां में नये सपनों के साथ नयी चुनौतियाँ लिये उस दिन गाँव वापस लौट गया।
                   वापस लौटते समय दीपक ने पूरा कालेज घूम कर देख लिया। हास्टल, लाइब्रेरी, क्लास कम सब कुछ देखा।

                   बड़ी-बड़ी बिल्डिंग विशाल क्लास रूम .................. कालेज के लड़के-लड़कियों के बीच का हिस्सा बन कर वह गर्व महसूस कर रहा था।

____________________________________________ आगे की कहानी आप जानना चाहते है तो मेरा ब्लॉग देखते रहे कथा काल्पनिक है.... मौलिक है किसी से जुड़ाव संयोग मात्र है   
 साधना श्रीवास्तव 

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