Saturday, June 6, 2015

सपनों को सच करने का रास्ता बताती हिन्दी भाषी युवक के सफलता की कहानी 2

सपनों को सच करने का रास्ता बताती हिन्दी भाषी युवक के सफलता की कहानी   मंजिले  2




देखो साहब और चाय पीनी हो तो बताओ वरना बोहनी के समय उपदेश देकर टाइम मत खोटा करो, अपुन की किस्मत तो चाय के कुल्हड़ ही बेचना है’’ बच्चा झल्ला कर बोला -
तभी आगे के डिब्बो से किसी ने चाय वाले को आवाज दी - ’’ चायवाले चार चाय देना’’
’’अभी आया साहब’’ - लड़का चिल्लाकर बोला - ’’चाय गर्म चाय .................चाय................’’ की आवाज लगाता वह बच्चा दीपक की आंखो से ओझल हो गया। दीपक देखता रह गया .......................क्या होगा पढ़-लिख कर कितने आत्मविश्वास से उस बच्चे ने प्रश्न किया था।
                   उस बच्चे को हो या हो दीपक को पूरा विश्वास था कि शिक्षा ही किसी की किस्मत संवार सकती है। गरीबी मिटाकर देश का विकास करने की किसी में ताकत है तो वह शिक्षा हैं।
                   ’’तन के लिए भोजन - मन के लिए शिक्षा’’ कुछ तरह के विचारों से सहमत दीपक ने डाॅ. सर्वपल्लीकृष्णन, नेहरू, कलाम, अम्बेडकर आदि अनेक शिक्षाविद्ांे के कथनों को याद किया। दीपक सिर्फ होनहार था बल्कि उसने अपनी पढ़ाई के अतिरिक्त भी अनेक महापुरूषों की आत्मकथा रचनायें पढ़ रखी थी। युवा शक्ति का समर्थक दीपक, आंखों में हजार सपने लिये.............देश की तस्वीर बदलने निकल पड़ा था।
                   धीरे-धीरे ट्रेन अपने गन्तव्य को पहुँच गयी। बड़े शहर की बड़ी बातें....................दीपक जब स्टेशन पर उतरा तो देखा उसके आस-पास चारों ओर भीड़ ही भीड़ हैं। उस भीड़ में दीपक को पहली बार घबड़ाहट महसूस हुयी। उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि किधर जाये ................... किससे पता पूछे ? उस भीड़ में दीपक को अपना वजूद नजर नहीं रहा था। गांव के शांत महौल में पले-बढ़े दीपक के लिए इतना शोर और चहल-पहल नयी बात थी। इतनी भीड़ और स्टाल तो शायद उसने गाँव के मेले में भी नहीं देखे थे। दीपक को समझ नहीं आया कि वह किधर और क्या करें ?
                   अचानक उसे एक धक्का लगा वह गिर पड़ा।
                   गिरने से उसके पैरों में थोड़ी चोट गयी। खून बहने लगा। दीपक रोआसां हो गया। किसी का ध्यान भी उसकी ओर गया। उसका गाँव होता तो लोग दौड़कर उसे उठा लेते। एक यहाँ यह शहर जहाँ उसके पैरों से खून निकल रहा था और कोई पूछने वाला नहीं। किसी तरह उसने खुद को सम्हाला और धीरे-धीरे उठा। अपना बैग उठाया और बगल के एक आदमी से कालेज का पता पूछा। उस आदमी ने दीपक को कालेज का रास्ता बताया। दीपक ने बाहर निकलकर एक आॅटो रिजर्व किया। जगह का अंदाजा होने का कारण दीपक को पहुंचने में निर्धारित समय से देर हो गयी। जैसे ही वह साक्षात्कार कक्ष के पास पहुँचा। गेट पर ही चपरासी ने रोक दिया।
’’कहाँ घुसे चले जा रहे हो ?’’ .
’’आज मेरा साक्षात्कार हैं। उसके लिए मुझे बुलाया गया है।’’
दीपक ने प्रति उत्तर में कहा।
’’अरे साक्षात्कार तो 11 बजे से शुरू था’’ चपरासी ने डाॅटते हुए कहा ’’हाँ मैं शहर में नया हूँ इसलिए यहाँ पहुंचने में देर हो गयी। क्या अब बहुत देर हो गयी।’’ दीपक ने उदास स्वर में कहा।
चपरासी ने थोड़ा नरम रूख अपनाते हुये कहा - ’’रूको मैं अन्दर जाकर पता करके बताता हूँ।
दीपक बाहर रूक कर इंतजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद चपरासी ने उसे अंदर जाने को कहा।
                   दीपक अब तक बहुत थक चुका था। पैर में अभी भी हल्का दर्द हो रहा था। अन्दर हाल में काफी लड़के-लड़कियाँ चमकीले परिधान में बैठे थे। उन सबके महँगे परिधानों के आगे दीपक को अपनी पोशाक काफी फीकी नजर रही थी। दीपक गाँव के माहौल में पला-पढ़ा था। कभी उसने लड़के-लड़कियों को इतने खुले माहौल में बात करते या करीब बैठे नहीं देखा था। वह पहले थोड़ा सकपका गया खुद को वह बहुत असहज महसूस कर रहा था। हाॅल के एक कोने में चार साक्षात्कारकत्र्ता एक टेबुल पर बैठे थे। जिनके सम्मुख एक-एक स्टुडेंट जा रहा था। धीरे-धीरे समय बीता और दीपक की बारी भी गयी।
                   दीपक अपने मार्कशीट की फाइल लेकर पहुँचा। जब उससे सवाल अंग्रेजी में पूछे जाने लगे तो वह उत्तर दे पाया। अब दीपक को बहुत घबड़ाहट हो रही थी।
एक टीचर ने पूछा - ’’अरे तुम तो कुछ भी नहीं जानते’’
दीपक ने हिन्दी में कहा - ’’नहीं सर हमारी अंग्रेजी इतनी अच्छी नहीं हैं, कृपया अगर आप हिन्दी में प्रश्न पूछंेगे तो मैं सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकता हूँ।’’
                   दीपक की बात सुनकर एक-दूसरे की तरफ मुँह करके सभी मुस्कुराने लगे, फिर आपस में कुछ बात करने लगे। सब उसकी मार्कशीट भी देख रहे थे। दीपक को बड़ा अजीब लगा। उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या करें ?


अचानक एक विशेषज्ञ ने मौन तोड़ा - ’’दीपक तुम तो बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुये हो.................. फिर भी यहाँ की सारी पढ़ाई तो अंग्रेजी में है। कैसे कर पाओगे? क्या तुम यहाँ खुद को एडजेस्ट कर पाओगे?’’ दीपक ने अब तक मायूस हो चुका था। अचानक बोला- ’’कोशिश करेंगे’’ तब पैनल के दूसरे विशेषज्ञ बोले - ’’शाबास यूँ ही हौसलें से काम लेना। चलो तुम्हारा मेरिट और लिखित परीक्षा के अच्छे माक्र्स के कारण एक और मौका देते हैं।’’ फिर उसके बाद विशेषज्ञांें ने सभी प्रश्न हिन्दी में किये, जिनका दीपक ने फटाफट उत्तर दे दिया। जिनके आधार पर दीपक का चयन हो गया।

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