Monday, April 6, 2015

पहनावा नहीं सोच बदलनी होगी, आवाज नहीं आग़ाज चाहिये


पहनावा नहीं सोच बदलनी होगी, आवाज नहीं आग़ाज चाहिये
बी0बी0सी0 के द्वारा बनायी फिल्म से उठते विवादों और हाल ही में निर्भया के दोषी मुकेश ने बी0बी0सी0 में बयान दिया कि गलती निर्भया की थी इसी के साथ उसने लड़कियों के  पहनावे और व्यवहार पर भी अपनी राय दे दी।
बी0बी0सी0 के द्वारा बनायी फिल्म का प्रदर्शन 8 मार्च को होना तय था परन्तु एक भारत में इसे सरकार ने बैन कर दिया और वही दूसरी ओर निर्धारित तिथि से पहले ही इसका प्रदर्शन इंटरनेट पर कर दिया गया। तमाम कोशिशों के बाद भी लगभग दो लाख लोगों ने इसे देखा।
समाज दो वर्ग में बॅट गया एक वर्ग फिल्म के प्रदर्शन की माॅग करने लगा और दूसरा वर्ग फिल्म पर प्रतिबंध को उचित ठहराने लगा। 
इस घटना ने जहाॅ भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिहन लगाा दिया वही सायबर सुरक्षा का प्रश्न भी लोगो के जेहन में आने लगा है।
इस बारें में समाज क्या चाह रहा है यह जानने के लिए मैने बहुत लोगों से मुलाकात की प्रस्तुत है उनसे बात-चीत के प्रमुख अंश-

 1 सी0एम0एस0 सामुदायिक रेडियो लखनऊ की प्रोग्राम कोडिनेटर सोमा घोष का कहना है कि मुकेश का बयान उस बीमार मानसिकता का प्रतीक है जो अपनी हर गलती और अपराध को बहुत आसानी से दूसरों के सिर पर डाल कर अपनी दोहरी मानसिकता का परिचय देते है। निर्भया के साथ जो हुआ उसकी जितनी निन्दा की जाये कम है । इस बात पर मुकेश जैसे अपराधी का भाषणबाजी करना निन्दनीय ही नहीं अक्ष्मय है कि सजा के बाद भी उसे पछतावा नहीं है और दुखद यह कि क्या भारतीय सुरक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर है कि कोई विदेशी जब चाहे भारतीय मुद्धद्धो पर अपनी राय थोपे.......जेल के अन्दर मुकेश तक फिल्म निर्माता कैसे पहुॅचे ? 
दूसरी सबसे अहम बात दूसरे कौन होते हम महिलाओं के पहनावे पर रोका-टोकी करने वाले दोष पहनावे का नहीं अपराधी और बीमार मानसिकता का है क्योकि आज चार साल की बच्ची हो या पचास साल का वृद्धा कोई भी सुरक्षित नहीं है।
2  वही वाराणसी की पूनम का कहना कि बी0बी0सी0 ने फिल्म बना कैसे ली ..........अब वह बनी क्या है यह देखने पर ही कोई टिप्पणी की जा सकती है लेकिन एक बात तो पक्की है कि पहनावे का दोष नहीं दोष मानसिकता का है क्योकि घर के बाहर के जो पुरूष ऐसी घिनौनी हरकत करते है वह मानसिक विकृति का शिकार होते है। पहनावे का दोष है तो हम घरों में भी सुऱिक्षत नहीं सब अपने घरों पर लड़कियाॅ, बेटी या बहन को पहचानते है और बाहर आते ही गलत टीका- टिप्पण्ी करते है। ईव टीजिंग या छेड़खानी एक ऐसी अनचाही घटना है जिससे कम से कम  भारत की हर लड़की का सामना अवश्य कभी ना कभी हुआ होगा ,मजे की बात यह है लड़की को जहाॅ इससे मानसिक पीड़ा पहुॅचती है तन मन और आत्मा आहत होती ,वही बात अगर पुरूष मानसिमता की करें तो यह उनके  लिए सिर्फ एक खेल और हल्का फुल्का मजाक है जिसे वह अपने दोस्तों को मजे से बताते है । आशय यह है कि जो बात किसी को पीड़ा दे रही वही बात दूसरे के लिए आन्नद और मजाक का विषय है। अब सवाल यह उठता है कि यह अंतर आया कहाॅ से ?इसके लिए कई बातें जिम्मेदार है जैसे सामाजिक और पारिवारिक परिवेश, लिंग  भेद ,लड़के लड़की का अन्तर,दोहरी सोच आदि ।पर इससे बड़ा सवाल यह है कि इसके लिए केवल पुरूष ही जिम्मेदार है, जवाब है नहींे। इन घटनाओं के होने का कारण जितना पुरूष है उतना महिला भी है।
3   मोनिका सिंह छात्रा एम0 जे0एम0 सी0
रामा विश्वविद्यालय,कानपुर 16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार को एक मनोरंजन का पात्र बना दिया गया हैं और साथ ही दोषी मुकेश सिंह जैंसे अपराधी के एक बेफिज़ूल बयान को महत्व दिया जा रहा हैं।
जबकि ऐसा किसी भी संविधान में नहीं लिखा हैं कि रात नौ बजें के बाद लडकियाॅ बाहर नहीं जा सकती औंर जो लडकियाॅ बाहर जाती हैं वे गलत चरित्र की होती हैं। अपनी गलत सोच को बदलने कि जगह लडकियो को बुरा बोलने से आप के बुरे कर्म सही नहीं हो जाते। 
किसी लडकी या औरत के छोटे कपड़ो से आप के चरित्र और सोच में गिरावट नहीं आनी चाहिये। दूसरो के चरित्र पर दोष लगाने से बेहतर हैं आप अपने चरित्र और अपनी मानसिकता का विकास करें।
4   लखनऊ के बी0बी0ए0यू0 की छा़त्रा गुंजन जयसवाल का कहना हैं कि मेरे विचारों में निर्भया डाक्यूमेंट्री समाज में पुरूषों की औरतों के प्रति सोच दर्शाती है इसमें जो इंटरव्यू में जो बातें आयी वह आश्चर्यजनक है और दुखी करने वाले है क्योंकि जिस युग में हम आगे बढ़ने की बात करते है उसी उसी युग में कुछ लोग ऐसी मानसिकता रखकर हमें पीछे ढकेल रहे है।विकास करना है तो हमें सकरात्मक सोच से आगे बढ़ना होगा ।                                                
  सबसे बात और समाज की वास्तविक कि स्थिति की बात करे तो कह सकते है जब आप छेड़खानी की घटनाओं को इग्नोर करती है तो आपकी चुप्पी समाने वाले के लिए मौन स्वीकृति बन जाती है। आकड़ें बताते है कि ज्यादातर महिलाओं के साथ होने वाले रेप केसों का पहला कदम छेड़खानी होता है।आशय यह है कि इन घटनाओं से बच निकालने की इनकी आदत इन्हें इतना निडर बना देती कि उन्हें लगता कि वह हर अपराध कर बच निकल जायेगे,और काफी हद तक होता भी ऐसा है,कभी परिवार इज्जत की दुहाई दे करएकभी समाज के नाम पर तो कभी शादी का हवाला दे कर लड़कियों को चुप करा दिया जाता है।उन्हें रिपोर्ट तक दर्ज कराने से रोक दिया जाता है।अगर कुछ ने रिपोर्ट दर्ज करा भी दी तो समाज के ताने और सहानुभूति की जगह मजाक का पात्र बनाकर ऐसा व्यवहार किया जाता जैसे गलती उस महिला या लड़की की है।पुलिस और प्रशासन का उदासीन रवैया भी इस समस्या का एक कारण है।


कुल मिलाकर कहा जाये तो मुसीबत कितनी भी बड़ी हो आपके सम्मान से बढ़कर नहीं है।हौसले के साथ डटकर मुकाबला करे छेड़खानी की हर छोटी बड़ी घटना का पुरजोर विरोध करे। जो कुकर्म छेड़खानी से बढ़ता रेप तक आ गया उसे अगर वही रोक दिया जाये तो वह नासूर बने ही नहीं तात्पर्य यह कि जैसे ही आपके या किसी के  भी बड़ी- छोटी कैसी भी छेड़खानी की घटना हो आवाज उठाये,विरोध करे । इसके लिए समाज के पुरूष वर्ग का योगदान भी जरूरी है।इस तरह किसी भी घटना को देखते ही आवाज उठाये और इन बहादुर लड़कियों का साथ दे। बस इतने परस्पर सहयोग से यह घटनाएं जन्दी से खत्म हो जायेगी। याद रखिये पुलिस के कोर्ट के भरोसे बैठने की बजाये आप अपनी आवाज उठायें और थोड़ा समाज इसमें पीड़ित लड़की मदद करे तो यह समस्या जड़ से खत्म हो जायेगी।

पर याद रखिये इसकी पहली पहल आपको करनी पड़ेगी,खुद को मजबूत बनाना होगा। अभिभावकों अपनी लड़की को सेल्फ डिफेंस के लिए आत्म रक्षा के लिए प्रेरित करना पड़ेगा
कदम आप बढ़ाओ पीछे सारा कारवाॅ चलेगा,
थोड़ी हिम्मत तो कर के देखो सारा जमाना बदलेगा। 
साधना श्रीवास्तव  

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